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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

11/5/10

छोटी खुशियों से बचाते हैं अपना घौंसला-हिन्दी कविता (chhoti khushiyan aur ghonsla-hindi kavita)

दिवाली की रात
पटाखों की गूंज रही है
आवाज चारों तरफ,
आकाश के अंधेरे को भी
धुंआ अधिक काला किये जा रहा है,
लगता है
खुशी साक्षात उतरकर जमीन पर आयी है।
सोचता हूं
कौन है वह लोग
जो देश की ग़रीबी पर
झूठे आंसु बहाते हैं,
उनकी मदद के नाम पर करते दलाली
ज़माने के आगे चंदे के लिये हाथ बढ़ाते हैं,
कौन है वह चित्रकार
जो देश की भुखमरी पर
बनाते हैं डराने वाली तस्वीर,
दुनियां को दिखाकर इनाम पाते
बदल देते अपनी तकद़ीर,
कौन है वह शायर जो
जो बेबसों पर हमदर्दी दिखाते हुए
लिख जाते हैं गज़ल,
लफ्जों के प्यासे अमीरों को
खुश करने के लिये दर्द सजाते
बात आम इंसान की
महफिलों के लिये ढूंढते महल,
आधे पेट भरे,
फटे कपड़े पहने,
जिनके हाथ में हैं पसीने के गहने,
गरीब और मज़दूर
अपने हाथों से ही छोटी छोटी खुशियां
यूं ही जुटा लेते हैं,
चाहे उनकी मदद रास्ते में
जज़्बात और हमदर्दी के दलाल उठा लेते हैं,
गरीबों और मज़दूरों की लाचारी से भी
बड़ी है उनके बाजूओं की ताकत
और दिल का हौंसला,
अभावों के हमले में भी
छोटी खुशियों से बचाते हैं अपना घौंसला,
हमदर्दी के सौदागरों ने यह
बात कभी नहीं समझाई,
किसी तरह की अपनी कमाई।
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लेखक संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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1 comment:

आशीष मिश्रा said...

बहोत सुंदर रचना

आपको भी सपरिवार दिपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ

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