tag:blogger.com,1999:blog-2949228965912421026.post3178011182450883225..comments2023-10-16T19:13:59.954+05:30Comments on दीपक भारतदीप का चिंतन: शायदी यही विकास कहलाता है-हिन्दी कविता (it is devlopment-hindi satire poem)dpkrajhttp://www.blogger.com/profile/11143597361838609566noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-2949228965912421026.post-70585524859700258432010-03-12T10:31:12.537+05:302010-03-12T10:31:12.537+05:30किसे समझायें कि
खुद को समझे बिना
जमाने को नहीं समझ...किसे समझायें कि<br />खुद को समझे बिना<br />जमाने को नहीं समझा जा सकता है<br />बंद कर दी अपनी अक्ल ताले में<br />तो कोई भी बिना जंजीरों के<br />भीड़ में भेड़ की तरह ले जायेगा तुम्हें<br />पर आंख और कान होते हुए भी<br />इंसान हो गये गुलाम<br />शायद यही विकास कहलाता है।<br />मार्मिक रचना दीपक जी।रज़िया "राज़"https://www.blogger.com/profile/12190998804214272758noreply@blogger.com