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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

11/21/10

बिना फिक्सिंग के कोई काम चल नहीं रहा-हिन्दी लघु व्यंग्य (without fixing any work not done-hindi shorty satire)

बिग बॉस से निष्कासित एक अभिनेत्री आज एक प्रसिद्ध हिन्दी चैनल पर सीधी बात करने आ गयी। यह सीधी बात करने वाले भी एक बहुत बड़े पत्रकार हैं जो ताजा लोकप्रियता प्राप्त उस अभिनेत्री को अपने सामने आने पर अपना प्रचार होने का लोभ संवरण न कर सके।
बिग बॉस जैसे अन्य वास्तविक प्रसारण कार्यक्रम बाज़ार तथा प्रचार माध्यमों को नये मॉडल देने के अलावा कुछ अन्य नहीं कर रहे यह इसका प्रमाण है। बिग बॉस से जितने लोग भी निकाले गये वह आजकल कहीं न कहीं साक्षात्कार दे रहे हैं और समाचार पत्र पत्रिकाऐं उनका विज्ञापनों के बीच में सामग्री सजाने के लिये उपयोग कर रहे हैं। इससे यह तो प्रमाणित हो गया है कि आज की इस रंग बदलती दुनियां में नये चेहरे प्रतिदिन लाने हैं और वास्तविक प्रसारण इसका एक जरिया हो गये हैं। सीधी बात करने वाले भी कौन हैं? एक महान पत्रकार! बाज़ार, प्रचार तथा मनोरंजन के क्षेत्रों के बीच फिक्सिंग का खेल चल रहा है।
आप समझ रहे होंगे कि वह मासूम अभिनेत्री जो शोर मचाकर पूरे देश की बदनामी मोल ले रही थी वह बिना योजना के था तो गलती पर हैं। उसने बिग बॉस में झगड़े देकर और गालियां देकर उसे चर्चित बनाया। वह चर्चित हो रही थी तो बाज़ार और प्रचार माध्यमों के प्रबंधक बेचैन हो रहे होंगे कि कब वह बाहर आये और उसका चेहरा अपने कार्यक्रमों और समाचारों के लिये उपयोग में लायें। अधिक पुरानी बात हो गयी तो सब गया गड्ढे में! सो कहा गया होगा कि भई जल्दी उसे बाहर भेजो! हमें भी तो अपना काम चलाना है।
वह बाहर हो गयी। बाहर होने से पहले पूरा भावनात्मक रूप से दृश्यांकन किया गया। उसके साथ एक अभिनेता भी बाहर आया। कहा गया कि बिग बॉस के घर में रहने वाले परिवार के सदस्यों ने दोनों को बाहर किया है। अब उस अभिनेता के लिये बिग बॉस के संचालक ने परिवार के सदस्यों से पूछा कि उसे वापस लायें
जवाब में सहमति भी मिली मगर मज़ा इस बात का कि वह सारी बात बिग बॉस पर छोड़ रहे थे और यह भी कह रहे थे कि अभिनेता के साथ ज्यादती हुई है। ऐसे में सवाल उठता है कि उस अभिनेता को निकाला किसने? छद्म बिग बॉस ने या परिवार के सदस्यों ने!
सीधी सी बात है कि पटकथा यह मानकर लिखी जा रही है कि देश में समझदार लोगों की कमी हो गयी है। यह अलग बात है कि इस घटना में फिक्सिंग के शक में हमने इस कार्यक्रम को देखा तो नज़र में आया। यह अलग बात है कि इस कार्यक्रम पर विवाद ही हम जैसे मूर्खों को देखने के लिये मज़बूर किया जा रहा था। उसमें यह विरोधाभास नज़र आ गया कि यह सब फिक्सिंग करते समय ध्यान नहीं रखा गया।
लब्बोलुआब यह कि बाज़ार, प्रचार तथा मनोरंजन का घालमेल हो गया है। बिग बॉस या अन्य वास्तविक प्रसारण में जो अधिक पहले लोकप्रिय होगा वह पहले बाहर आयेगा ताकि उसे मनोरंजन चैनलों के साथ ही समाचार चैनल भी भुना सकें। अब तो सब फिक्सिंग हो गया है। बिना फिक्सिंग के तो न कोई काम चल रहा है न कार्यक्रम बन रहा है।
कल इसी विषय पर लिखा गया यह लेख पढ़ें।
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http://dpkraj.blogspot.com/2010/11/bigg-bossmithkon-ke-srijan-ki-ek-mithak.html

लेखक संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,Gwalior
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