मन में घुमड़ते शब्द
जब सताने लगें तब समझना
अपना अर्थ समझाने के लिए
जमीन पर उतरना चाहते हैं
जब मन में हो अकेलापन
ख्यालों में हो हो सूनापन
तब समझना कुछ शब्द हैं
तुम्हारे मन में
जो किसी अर्थ का साथ ढूंढना चाहते हैं
उन्हें जितना अपने अन्दर रोकोगे
विष बनकर डसने लगेंगे
तुम्हारे खालीपन में बीभत्स
आवाज करने लगेंगे
जब कहीं मन न लगता हो
कलम को अपना साथी बना लो
सत् साहित्य की किताबों को
अपना गुरु बना लो
जब अकेलेपन का अहसास हो
समझ लेना तुम्हारे शब्द
कागज़ पर अपना घर बनाना चाहते हैं
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भ्रमजाल फैलाकर सिंहासन पा जाते-दीपकबापूवाणी (bhramjal Failakar singhasan
paa jaate-DeepakbapuWani
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*छोड़ चुके हम सब चाहत,*
*मजबूरी से न समझना आहत।*
*कहें दीपकबापू खुश होंगे हम*
*ढूंढ लो अपने लिये तुम राहत।*
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*बुझे मन से न बात करो*
*कभी दिल से भी हंसा...
6 years ago
1 comment:
"तुम्हारे शब्द कागज़ पर अपना घर बनाना चाहते हैं"
बहुत सुन्दर रचना जो शब्दों और भावों को जीवन दान देने को लालायित है...
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