विश्वास कम होता गया।
वफादारी बिकती है बाजार में
फिर भी इंसान वफा से
महरूम होता गया।
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कहते हैं पैसे से बाजार में
सब मिलता है।
फिर भी खुश क्यों नहीं इंसान
दुनियां की हर शय मयस्सर है
गमों में डूबा दिखता है।
हर इंसान दिल की बात
कहते हुए रोते शब्द लिखता है।
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सुना है बाजार में जो चीज कम दिखती
उसकी कीमत ऊंची मिलती।
कमबख्त! ईमानदारी फिर कौनसी शय है
जो लापता है फिर भी
किसी भाव में नहीं बिकती।
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
1 comment:
zabardast kaam !
anootha vyangya.....
badhaai !
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