कुछ पल की खुशी की चाहत भी
कभी पूरी नहीं होती
क्या कोई दिल लगायेगा हमसे
चीजो से भरकर भी अपना घर लोगों की
ख्वाहिशों की भूख मरी नहीं होती
पानी की प्यास हो जिसे
ओक से पीकर भी तसल्ली कर ले
जो प्यासे हैं चांदी के
उसके ग्लास में पानी पीते हैं
पर उनकी प्यास कभी नहीं मरी होती
हमने सडको पर चलते हुए
देखे हैं दुनिया के रंग
लोहे की बंद गाड़ियों में
जो घूमे है हमेशा
क्या करेंगे हमसे संग
जिनके मन में दुनिया लूटने की चाह
वह क्या किसी को इनाम देंगे
जो लुटाते हैं दौलत ज्ञान की
कुछ पाने की चाह उनके मन में नहीं होती
गगन चुम्बी इमारतों में रहने वालों के
मन में होती है चुभन
जब उनके बीच झौंपडियों की बस्ती होती
जमीन पर खडे होकर जब देखते हैं
हम आकाश की तरफ
कहीं खुशी लटकी नहीं होती
निहारते हैं जब जमीन पर दिल से
तब यहीं कहीं बिखरी होती
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भ्रमजाल फैलाकर सिंहासन पा जाते-दीपकबापूवाणी (bhramjal Failakar singhasan
paa jaate-DeepakbapuWani
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*छोड़ चुके हम सब चाहत,*
*मजबूरी से न समझना आहत।*
*कहें दीपकबापू खुश होंगे हम*
*ढूंढ लो अपने लिये तुम राहत।*
*----*
*बुझे मन से न बात करो*
*कभी दिल से भी हंसा...
6 years ago
2 comments:
बहुत सुन्दर ! गगनचुम्बी इमारतों में खुशियाँ ही हों आवश्यक नहीं है ।
घुघूती बासूती
बहुत सुंदर और सारगर्भित कविता , मजा आ गया !
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