जब दिल में प्यार नहीं होगा
तब जुबान से निकले शब्दों में
कैसे झलकेगा
जब खून में नहीं हैं हमदर्दी तो
सुर में दर्द कैसे लगेगा
यूं ही हवा में बाते करते हुए
बीत गए बरसों
अब क्या उम्मीदों का
आसरा लगेगा
अपने जजबातों से ही जो खेलते हैं
आंखों से खूबसूरत नजारे देखने की बजाय
खून से रंगे स्याह पन्नों को
पढ़ने में उनको ठेलते हैं
हादसों को देखने-सुनाने की चाह में
आदमी भूल गया है यह बात
जैसे देखेंगे ख्वाब
वैसे ही नजारे सामने आयेंगे
फिर भी दूसरों के दर्द को देखकर
हमदर्दी की बजाय
यही होती है ख्वाहिश कि
किसी को दर्द पैदा हो
तो उसे हम सहलाएं
लोग इस जहाँ में अपने दिल से
बुलाए दर्द को ही झेलते हैं
भ्रमजाल फैलाकर सिंहासन पा जाते-दीपकबापूवाणी (bhramjal Failakar singhasan
paa jaate-DeepakbapuWani
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*छोड़ चुके हम सब चाहत,*
*मजबूरी से न समझना आहत।*
*कहें दीपकबापू खुश होंगे हम*
*ढूंढ लो अपने लिये तुम राहत।*
*----*
*बुझे मन से न बात करो*
*कभी दिल से भी हंसा...
6 years ago
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