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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

1/9/17

हर इंद्रिय का अभ्यास ऐसे कार्यक्रम देखें-बिग बॉस पर संपादकीय (Yog should Sas its Tv Prograg those givies Practis for All Indriya-Hindi Editor on Big Boss)


                                        हमने अंतर्जाल पर पढ़ा था कि बिग बॉस में शामिल एक बाबा अनेक अपराधों में लिप्त रहा है। भारत के कुछ राष्ट्रवादी हमेशा ही टीवी तथा फिल्मों में हिन्दू धर्म को बदनाम करने के लिये सामग्री डालने का आरोप लगाते हैं। हमें यह आरोप सही भी लगता है।  बिग बॉस में पुराने धारावाहिक में एक राजनीतिक बाबा भी शामिल हुए थे जो शुद्ध रूप से खुले में हिन्दू धर्म का जनवादी में अंदाज में विरोध करते हैं। हमें इस पर कोई आपत्ति नहीं है पर हमारा सवाल यह है कि अन्य धर्मों में भी कुछ बदनाम धार्मिक तत्व हैं उन्हें क्यों नहीं बिग बॉस में लाया जाता। फिर दूसरा सवाल यह है कि आखिर बाबाओं को लाने की क्या जरूरत है?
        हैरानी इस बात की है कि बिग बॉस का कार्यक्रम देखने वाले बहुत हैं।  मनोरंजन व्यवसायियों का एक सूत्र है वह यह कि शोर तथा संगीत के माध्यम से दर्शक की सारी इंद्रियों को हतप्रभ कर उन्हें अपने कार्यक्रम से  चिपकाये रखो। जब से बिगबॉस धारावाहिक प्रारंभ हुआ है हमने कभी भी उस पर आंखें, कान, और दिमाग नहीं लगाया।  अलबत्ता बीच में झगड़े और संगीत का शोर सुनकर देखते हैं कि यह चल क्या रहा है? यही नहीं अनेक ऐसे कार्यक्रम हैं जिसमे बौद्धिक विलास के बिना मन बहलाने की सुविधा है।  शोर और संगीत में मनोरंजन ढूंढते लोग चेतनाहीन हो जाते हैं।  यह चेतनहीन रहने की आदत समाज का एक बहुत बड़ा संकट बन चुकी है। अनेक बार अपने दलबल के साथ सड़कों और भीड़ पर चलते हुए ऐसा लगता है कि हम ही कुछ देख और पढ़ रहे हैं बाकी तो सभी बस चले जा रहे हैं। कभी कभी तो लगता है कि हम ही मनोरोगी हैं बाकी चेतनावान हैं।  छोटी छोटी बातों पर उत्तेजित होना, किसी कार्य के विषय में पूर्ण ज्ञान लिये बिना उसे करने के लिये तत्पर होना तथा अपनी तृच्छ इच्छा पूर्ति पर भारी निराशा व्यक्त करने की प्रवृत्ति जिस तरह समाज में बढ़ी है उससे लगता है कि लोगों की इंद्रियां अब सतही रूप से ही चेतनावान हैं। गहराई में अब भयानक शून्य है।
                   खाने पीने में स्वाद  के नाम अपच पदार्थों का ग्रहण करना तथा सोच से बचने के लिये दृश्यों से भरे मनोरंजन में मशगूल होना जब सामान्य जन की आदत हो गयी है तब यह कहना ही पड़ता है कि मृतसंवेदनाओं के बीच चिंत्तन की सांस लेने वाले विद्वान धन्य हैं। अनेक लोग इस लेखक से पूछते हैं कि आखिर बिग बॉस को लोग देखते क्यों हैं? क्या है इसमें?
                          हमारा जवाब होता है कि ‘मानवीय संवेदनाओं को भ्रमित करने वाली पूरी सामग्री है जो उसमें विस्मृत हो जाती हैं।’
                       एक योग और ज्ञानसाधक के रूप में हम जानते हैं कि संस्कार और स्मृति एक दूसरे के पूरक हैं।  स्मृतियां के अनुसार मनुष्य कर्म करता है जिन्हें हम ंसंस्कारजनित कहते हैं। बिग बॉस जैसे कार्यक्रम दर्शकों की स्मृतियों को ध्वस्त करते हैं-यानि इसे संस्कारों का विध्वंस भी कहते हैं। लोग देखते सुनते हैं और  केवल देखते सुनते हैं। चक्षु मस्तिष्क की सारी ऊर्जा पी जाते हैं तब अन्य इंद्रियां शिथिल हो जाती हैं। उन्हें इसकी आदत हो जाती है और आदमी जड़ बनकर सब देखता है पर सोचता नहीं है। बिग बॉस पर प्रतिबंध लगाने की मांग हम नहीं करेंगे क्योंकि एक योग व ज्ञान साधक के रूप में हमारा मानना है कि यह हल्कापन है इसलिये लोगों को समझा रहे हैं कि हर इंद्रिया का अभ्यास कराये ऐसे ही मनोरंजक कार्यक्रम देखें।

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