किसमें नहीं होता
शुद्धि कहां है।
सोच से जड़
हो गये ये इंसान
बुद्धि कहां है।
जले शब्द
उगलते चूल्हे
वाणी कहां है।
सभी भिखारी
ढूंढ रहे हैं माल
दानी कहां है।
लंगड़ी भाषा
सिखाई गुरुओं ने
बोध कहां है।
शिक्षित झुंड
शहर में घूमता
शोध कहां है।
दर्द की दवा
मिलती कभी कभी
रोज कहां है।
प्रश्न वन
घना है चारों ओर
खोज कहां है।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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