हमें मंजिल पर वह क्या पहुंचायेंगे जिनकी चाल में
बेईमानी है,
आसरा क्या देंगे बेबसों को बेदखल करने की जिन्होंने
ठानी है,
हर शहर में बड़ी बड़ी इमारतों के जंगल खड़े हैं,
जिनके दिल पत्थर के हैं वही कहलाते जज़्बातों के
ठेकेदार बड़े हैं,
नये से पुराने होते सामान में लोग खूब खुशी नाचते पा
रहे हैं,
तरक्की की दीवार के पीछे अपराध पुण्य बनकर बचते जा रहे
हैं,
ज़माने में चर्चा
है कि आकाश से उतरकर धरती पर जरूर आयेंगे,
बिखेर देंगे बिना दाम लिये बहार रोती सूरतों को जमकर
हंसायेंगे,
कहें दीपक बापू अपना दिल बहलाना खुद ही सीख लो
मुफ्त में कोई हमदर्द नहीं मिलता यह सच्चाई हमने जानी
है।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja "Bharatdeep"
Gwalior Madhya Pradesh
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com
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1 comment:
बहुत सही कहां। सुन्दर अभिवयक्ति।
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