विश्वास की कच्ची मिट्टी में ढले थे,
रूह की रौशनी में चिराग की तरह जले थे।
कहें दीपक बापू चलते रहे यायावर की तरह
नहीं रहा वह पता याद जहां से हम चले थे।
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कभी ख्वाहिश थी आसमान से तारे तोड़कर जमीन पर लायेंगे,
कुछ खास है हमारी शख्सियत में सभी को बतायेंगे।
कहें दीपक बापू जल्दी टूटे सपने जमीन पर जब गिरे
मुश्किल यह है कि अब अपने दिल को कैसे मनायेंगे।
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धरती पर बिखरे हैं फूल भी कांटे भी चाहे जो चुन लो,
ख्याल हो खुश होने का तो रुकना नहीं वरना सिर धुन लो।
कहें दीपक बापू दिमाग में पिरोये हुए है सोच के धागे,
नीयत है तुम्हारी चमकदार या डरावनी दुनियां बुन लो।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja "Bharatdeep"
Gwalior Madhya Pradesh
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com
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