पाकिस्तान को लेकर ढेर सारी बातें होती हैं। जब दोनों के बीच माहौल थोड़ा ठंडा होता है तब खेल और फिल्म या संगीत में पाकिस्तानी लोगों को बुलाकर अच्छे रिश्ते बनाने की बात होती है। कुछ समय तक सब चलता है फिर अचानक कुछ ऐसा होता है कि दोनों मामलों में बढ़े हुए कदम वापस ले लिये जाते हैं। भारत में कुछ रणनीतिकारों का मानना है कि राजनीति से अलग हटकर दोनों देशों के नागरिकों के आपसी संबंध बनाने पर जोर देना चाहिए। यह प्रयास केवल पाकिस्तान से क्रिकेट संबंध जोड़ने, टीवी कार्यक्रमों में पाकिस्तानी कलाकारो के अभिनय, भारतीय फिल्मों में पाकिस्तानी गायकों के स्वर शामिल होने तथा कुछ बुद्धिमानों के आपसी मिलने से अधिक नहीं बढ़ पाते। दरअसल हमारे देश के लोग पाकिस्तान की अंदरूनी स्थितियों को नज़रअंदाज करते हैं। वह इस बात को भूलते हैं कि पाकिस्तान की शैक्षणिक पुस्तकों में भारत तथा यहां के धर्मों पर प्रतिकूल सामग्री पढ़ाई जाती है। हमारे देश और धर्मों के प्रति वहां नफरत के बीज बचपन में ही बो दिये जाते हैं। नागरिकों के आपसी संबंध बढ़ाने के प्रयास में चंद पाकिस्तानी जब यहां आते हैं तब उनको असलियत पता चलती है पर उनकी संख्या इतनी कम है कि वह वापस लौटकर अपने पूरे देश की मानसिकता नहीं बदल सकते।
यही कारण है कि दोनों के नागरिकों के आपसी संबंधों का कोई फल नहीं निकलता। इसके लिये यह आवश्यक है कि पाकिस्तान पर अपनी शैक्षणिक पुस्तकों में भारत था यहां के धर्मो के विरुद्ध सामग्री हटाने का दबाव डालना चाहिए। दूसरी बात यह कि नागरिकों के आपसी संबंधों का विस्तार पाकिस्तान के सिंध, बलूचिस्तान, और पश्चिमी सीमा प्रांत में भी होना चाहिये जबकि वह अभी तक लाहौर तक ही सीमित रहता है।
पाकिस्तान के साथ जिस तरह भारत के संबंध रहे हैं उसे देखते हुए उसकी मित्रता की निरंतरता में हमेशा संदेह रहता है। पाकिस्तान शुरुआत में धार्मिक पहचान वाला देश नहीं था पर धीरे धीरे वहां अन्य धर्मों के लोगों को पलायन अथवा धर्म परिवर्तन के लिये मजबूर किया गया। दूसरी बात यह कि पाकिस्तान को मध्य एशिया के सहधर्मी राष्ट्रों से प्रथक करना आवश्यक है। वह पाकिस्तान की जमीन को अपने धार्मिक लक्ष्यों के लिये उपयोग कर रहे हैं। यह मध्य एशियाई देश अपनी संपन्नता के कारण पश्चिमी देशों से डर के कारण नहीं लड़ सकते इसलिये उनके विरोधियों को पाकिस्तान की जमीन दिलवाते हैं। इसलिये कूटनीतिक ढंग से ऐसे प्रयास किये जायें जिससे वह पाकिस्तान का साथ छोड़ने के लिये मजबूर हों। यह बात तय है कि यह सब आग्रह करने से नहंी बल्कि कड़े कदमों से ही संभव है। पाकिस्तान से संबंधों पर विचार करते समय इस बात का ध्यान करना चाहिये कि वह सर्वधर्मसमभाव मानने वाला देश नहीं है। उसका धर्म ही उसकी सामरिक, आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक शक्ति है। वैचारिक रूप से वह कभी हमारे देश का वह सम्मान तब तक नहीं कर सकता जब तक उसके साथ सख्ती नहीं बरती जाती।
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja "Bharatdeep"
Gwalior Madhya Pradesh
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com
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