किश्तों में जिंदगी कटती है,
कभी बढ़े कभी घटती है।
कहें दीपकबापू पैसा शहद जैसा
जहां मिले वहां भीड़ फटती है।
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स्वयं बीमार पर भली दवा बांटे,
फूल लूटकर राहों में बिछाते कांटे।
कहें दीपकबापू दवाखाने में सोये
नींद में अपनी रेवड़ियां छांटे।।
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फरिश्ते कभी फरियादी नहीं होते,
रिश्ते बुरे हो पर मियादी नहीं होते।
कहें दीपकबापू भले कितने दिखें
पर सभी भलाई के आदी नही होते।
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झूठी वाणी धर्म ध्वजा पकड़े हैं,
त्यागी रूप धरे माया में जकड़े हैं।
कहें दीपकबापू सज्जन मुखौटा पहने
अपराधी सबसे अकड़े हैं।
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राजपद बैठे बाहें जरूर कसी हैं,
पर गुलामी तो रग रग में बसी है।
कहें दीपकबापू गरीब का नाम जपे
पर अक्ल अमीर जाल में फसी है।
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