- मनुष्य हो या पशु पानी सभी की मूलभूत आवश्यकता होती है। जिस प्रकार पानी के अभाव में प्राणी व्याकुल हो जाते हैं यहां तक कि उनके प्राण भी निकल जाते हैं, उसी प्रकार पानी न मिलने से वृक्ष भी भारी कष्ट का अनुभव करते हैं। पानी की कमी से वृक्षों-वनस्पतियों का सूखना तो ऊपर से दिखाई देता है लेकिन उनका कष्ट प्राणी को ऊपर से दिखाई नहीं देता।
- मनुष्य को जैसा भोजन प्राप्त हो उसे देखकर प्रसन्नता का अनुभव करना चाहिऐ। प्राप्त भोजन में गुण-दोष निकाले बिना उसे ईश्वर का प्रसाद समझ कर प्रसन्नता से ग्रहण करें, जूठन न छोड़ें। यह अन्न सदैव मुझे प्राप्त हो यह भावना रखने चाहिए।
- प्रसन्नता से ग्रहण किया भोजन बल-वीर्य की वृद्धि करता है, जबकि निंदा और निराशा से किया भोजन सामर्थ्य और वीर्य को नष्ट करता है।
- भूख से बैचैन होने पर भी विवेकशील व्यक्ति प्रतिग्रह को धर्म और न्याय के विरुद्ध जानकर तथा प्रतिग्रह से मिलने वाली वस्तुओं के लाभ का ज्ञान होते हुए भी उसे ग्रहण नहीं करते।
भ्रमजाल फैलाकर सिंहासन पा जाते-दीपकबापूवाणी (bhramjal Failakar singhasan
paa jaate-DeepakbapuWani
-
*छोड़ चुके हम सब चाहत,*
*मजबूरी से न समझना आहत।*
*कहें दीपकबापू खुश होंगे हम*
*ढूंढ लो अपने लिये तुम राहत।*
*----*
*बुझे मन से न बात करो*
*कभी दिल से भी हंसा...
6 years ago
1 comment:
ज्यादा पढ़ लिख गये लोगों को यह बातें समझ में नहीं आती और अस्पताल के लंबे-चौड़े बिल भरकर सीना फुलाए घूमते हैं कि इलाज पर इतना पैसा खर्च कर दिया.
जैसा अन्न वैसा मन. अच्छी जानकारी.
Post a Comment