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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

7/27/10

ज़िदंगी के कांटे और गुलाब-हिन्दी शायरी (zindagi ke kaanti aur fool-hindi shayari)

जब तक कांटों के साथ था
गुलाब जिंदा रहा
अलग हुआ तो मुरझा गया,
वह चिराग क्या अपना दर्द बयान करे
जिसको जलाने वाला ही बुझा गया।
पल पल रंग बदलती इस जिंदगी में
कभी खुशनुमा पल तो
कभी हादसे भी पेश आते हैं,
उम्मीद में छा जाता ग़म का अंधेरा
जहां टूटे सपने चुभोते हैं नश्तर
वहां तिनके भी फरिश्ते बन जाते हैं,
अपनों ने बढ़ायी हैं जहां उलझने
वहां कोई गैर मसले सुलझा गया।
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कवि,लेखक,संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com

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