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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

6/30/11

पुरानी कहानी-हिन्दी क्षणिकायें (purani kahani-hindi kshaniaen)

विकास की इमारत में
किसी मजदूर का खून
पसीना बनकर बह रहा है,
वह फिर भी गरीब है
उसका अभाव
पुराने शोषण की पुरानी कहानी कह रहा है।
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दौलतमंदों की तिजोरी में
जैसे जैसे रकम बढ़ती जायेगी,
कागजों पर पर गरीबी की रेखा
उससे ज्यादा चढ़ती नज़र आयेगी।
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यकीनन विकास बहुत हुआ है
पर हम वहीं खड़े हैं,
सभी कह रहे हैं
देश विकास की राह पर
दौड़ता जा रहा है
हम यकीन कर लेते है
देश बड़ा है
हम थोड़े ही बड़े हैं।
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विकास में अमीर
जमीन से आकाश पर चढ़ते हैं,
मगर गरीब हमेशा
अपनी पुरानी रोटी की
लड़ाई पुराने ढंग से ही लड़ते हैं।

लेखक संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athour and writter-Deepak Bharatdeep, Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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