हाथ आया नौकरी का लिखित आदेश,
आ गया उसमें खुशी का आवेश,
तत्काल वह मोटर साइकिल लेकर पहुंचा
अपनी माशुका के पास,
जिससे थी उससे पूरी जिंदगी
अपने साथ गुजारने की आस,
उसे वह दिखाते हुए बोला,
‘डार्लिंग,
लो हो गया अपना काम,
इश्क को शादी का दें अब नाम,
मिल गयी मुझे उसी विभाग में
जहां तुम्हारे मौसा जी विराजते हैं,
मुझे छोड़कर दूसरी जगह वही
तुम्हारे लिये रिश्ते ताकते हैं,
बढ़िया वेतन और भत्ते मिलेंगे,
पूरी जिंदगी हमारे लिये खुशी के फूल खिलेंगे।’’
यह खबर सुनकर भी
माशुका का चेहरा नहीं खिला,
भावविहीन चेहरा करता दिखा ढेर सारी गिला,
उसने पहले मुंह बिचकाया,
फिर आशिक का अपने कंधे पर रखा हाथ खिसकाया,
और बोली
‘‘नौकरी किसी कमाऊ विभाग में होती
तो शायद मजा आता,
जहां तन्ख्वाह के अलावा ऊपरी कमाई होती तो
यह समाचार बहुत भाता,
देखा है अपनी मौसी का हाल,
सूखी तन्ख्वाह से मौसा रहे हमेशा बदहाल,
मौसा की कमाई मौसी को मेहनत की लगती है,
इसलिये कहीं भी खर्च करने से भगती है,
उससे तो मेरी सहेली की मौसी मजे में है,
जहां मौसा की ऊपरी कमाई से बाथरूम में भी
पानी के नल भी सोने से सजे हैं,
तुम कहीं दूसरी जगह नौकरी तलाश करो
सूखी संभावनाओं का किसी तरह नाश करो,
तभी तुम्हारे और मेरे इश्क के पल
शादी के फूल की तरह खिलेंगे।
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लेखक संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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