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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

8/10/15

अमन के घर भी भस्म कर देते हैं-हिन्दी व्यंग्य कविता(aman ke ghar bhi basma kar dete hain-hindi satir poem)

दर्द के व्यापारी
कभी अपने चेहरे पर भी
जख्म कर लेते हैं।

खाली बैठे होते
तब भरे बाज़ार रक्त
बहाने की रस्म भी कर लेते हैं।

कहें दीपक बापू खुशी से
जीना नहीं सीखा ज़माना
मस्ती के लिये
झगड़े का ढूंढता बहाना
जज़्बात सजाये बैठे दुकान पर
बेचने के लिये
वह अमन के घर भी
भस्म कर देते हैं।
............
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja "Bharatdeep"
Gwalior Madhya Pradesh

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com 
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