तुम्हारी यादें
अगर चीज होती तो
दिल की अल्मारी से
निकालकर बाहर फैंक देते।
तुम्हारा चेहरा
दिमाग की दीवार पर
कील से टंगी तस्वीर होती तो
निकालकर बाहर फैंक देते।
कहें दीपकबापू इंसान में
बसता देवता और शैतान
भावनायें बहता पानी
पत्थर होती तो
निकालकर बाहर फैंक देते।
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उन दुआओं का
असर नहीं होता
जिसमें दिल की
मर्जी शामिल नहीं है।
इलाज कैसे होगा
जब हमदर्दों की भीड़ मे
दवा लाने वाला
कोई शामिल नहीं है।
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हंसने के लिये बहाना
जरूरी लगने लगे
तब समझना
दिल तंग हो गया है।
विश्वास टूटा लगे सभी से
तब समझना
दिमाग का ख्याल
भंग हो गया है।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja "Bharatdeep"
Gwalior Madhya Pradesh
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com
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