सपने बेचने का व्यापार
बहुत सरल है
हल्दी लगे न फिटकरी
रंग चोखा आये।
जिदंगी के कड़वे सच से
उकताये ज़माने में
हर रोज दिल बहलाने का
ख्याल पैदा कर
जेब बस यूं ही भरती जाये।
कहें दीपक बापू
दौलत के पहाड़ पर चढ़े लोग
ज़माने के लिये बहुत फिक्रमंद दिखते हैं,
कलमकार कागज पर
उनकी मासूम अदाओं पर गीत लिखते हैं,
उगलती ज़मीन जो सोना
अब बंजर हो गयी
कदम कदम पर छाया दर्द और कड़वाहट
ऐसे में बहार लाने का सपनां
देखते देखते बाज़ार में
महंगे दाम में बिक जाये।
बहुत सरल है
हल्दी लगे न फिटकरी
रंग चोखा आये।
जिदंगी के कड़वे सच से
उकताये ज़माने में
हर रोज दिल बहलाने का
ख्याल पैदा कर
जेब बस यूं ही भरती जाये।
कहें दीपक बापू
दौलत के पहाड़ पर चढ़े लोग
ज़माने के लिये बहुत फिक्रमंद दिखते हैं,
कलमकार कागज पर
उनकी मासूम अदाओं पर गीत लिखते हैं,
उगलती ज़मीन जो सोना
अब बंजर हो गयी
कदम कदम पर छाया दर्द और कड़वाहट
ऐसे में बहार लाने का सपनां
देखते देखते बाज़ार में
महंगे दाम में बिक जाये।
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja "Bharatdeep"
Gwalior Madhya Pradesh
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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