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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

10/8/13

मोबाइल और समाज-हिन्दी व्यंग्य चिंत्तन(mobial aur samaj or society-hindi vyangya chinttan or satire thought)



                        आजकल लोगों का ध्यान भगवान पर कम मोबाइल पर ज्यादा होता है। भगवान ही क्या लोगों के अपने परिवार, मित्रों तथा रिश्तेदारों के बारे में भी स्मरण तभी आता है जब उनके पास मोबाइल पर कॉल या मिस कॉल आता है।  स्थिति यह है कि कहीं दो लोगों की आपसी बातचीत कभी एक दौर में पूरी नहीं हो पाती और अगर कहीं बैठक चल रही हो तो वहां वक्ता और श्रोता  पूरी बात कह और सुन नहीं पाते।  बीच बीच में मोबाइल की घंटी विराम लगाती है। मंदिरों में मूर्तिपूजा करने गये लोग अपने हाथ में पूजा का सामान थाली में लिये रहते हैं। एक मूर्ति पर फूल डालते हैं दूसरी पर डालने से पहले ही घंटी बज उठती है। भक्त का ध्यान हवा होता है।  कुछ शालीन भक्त घंटी बजते ही सामने वाले को अपने मंदिर में होने की बात बताकर प्रसन्न होते हैं कि चलो अपने धर्मभीरु होने का प्रचार तो हुआ।  कुछ लोग थोड़ी बात के बाद फोन बंद करते हैं कुछ लोग लंबी बात करने के बाद कहते हैं कि यार, अब बाकी बात पूजा के बाद करूंगा।
                        हमारा मानना है कि इससे मूर्तिपूजा से होने वाला ध्यान का लाभ खंडित होता है।  माना जाता है कि जिसका मन निरंकार में ध्यान नहीं लगता वह मूर्ति की एकाग्रता से पूजा कर उसका लाभ उठा सकता है। इस तरह मोबाइल से होने वाली बाधा ध्यान की प्रक्रिया को समाप्त कर देती है। अनेक बार तो ऐसा लगता है कि लोग मोबाइल के भक्त हैं पर मन को दिखाने के लिये मंदिर चले आते हैं कि हम भी धर्मभीरु है और भगवान को याद दिलायें कि उसे हम भूले नहीं है।
                        मोबाइल ने आपसी रिश्तों का कचड़ा किया है।  अनेक बार ऐसे लोग मिल कॉल  करते हैं जिनका अपना कोई काम नहीं होता।  वह एक तरह से संदेश देते हैं कि अटकी हो तो बात करो, नहीं तो भाड़ में जाओं।  इतना ही नहीं मिस कॉल करने के बाद उन्हें जब कॉल दो तो वह बिना झिझक बताते हैं कि उनके पास खरीदा हुआ वार्तालाप का समय नहीं है। इन लोगों की पोल तब खुलती है जब अपना काम होने पर यह तत्काल फोन कर देते हैं। कम से कम मोबाइल के उपयोग से यह तो पता चला है कि किसके लिये हम महत्वपूर्ण है और कौन इसका दिखावा भर करता है।
                        सच बात तो यह है कि मोबाइल ने गांव गांव तक अपनी पहुंच बना ली है। जहां बिजली नहीं पहुंची वहां भी मोबाइल पहुंच गया है।  जिन गांवों में बिजली नहीं है या कम आती है वह उन गांवों से संपर्क बनाये रखते हैं जहां उनको मोबाइल की बैटरी चार्ज करने का अवसर मिलता है।  आधुनिक मॉल हो या सब्जी मंडी सभी जगह आसपास मोबाइल की घंटी बजती सुनाई देती है। कुछ लोग शिकायत करते हैं कि बैंक आदि में जाने पर बाबू अपने काम के दौरान ही मोबाइल पर बात कर ग्राहक कीा समय नष्ट करते हैं पर हमने देखा है कि जिनी व्यवसायों में भी यही हो रहा है।
                        मोबाइल के उपयोग को लेकर स्वास्थ्य विशेषज्ञ अत्यंत चिंतित हैं पर उनकी सुनता कौन है? वह दैहिक विकार पैदा होने की बात करते हैं। वह मस्तिष्क पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव के तर्क देते हैं पर उससे मन और बुद्धि पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों का उनके पास कोई प्रमाणिक आंकलन नहीं है।  हम अपने अनुभव से कह रहे हैं कि मोबाइल मनुष्य को देह, मन तथा बुद्धि को अस्थिर कर रहा है।  विचार शक्ति को नष्ट करने में मोबाइल इतना बड़ा योगदान दे रहा है जिसका आंकलन किया जाये तो अनेक डरावने सत्य सामने आयेंगे।  यह आंकलन  होना अभी बाकी है।
                        हमारे सामने बैठा व्यक्ति बातचीत इस तरह बात  कर रहा हो जैसे कि बहुत आत्मीय हो पर जैसे ही उसके पास मोबाइल आता है वह हमारा अस्तित्व ही भूल जाता है।  हम जैसे चिंत्तक लोगों को  उस समय अपनी  कम दूसरे की चिंता  अधिक होती है क्योंकि उसकी मानसिक अस्थिरता उसके लिये ही संकट होती है।   दूसरे का फोन हो तो लोग लंबी बातचीत करने के लिये तत्पर रहते हैं और अपना हो तो दोहरे तनाव से उनका रक्तचाप बढ़ता है- एक तो अपनी बात पूरी करनी है दूसरी यह कि बिल अधिक न आये।
                        हमारे एक सहृदय मित्र से  उस दिन फोन पर हमारी बातचीत हो रही थी।  हमने उससे कहा कि ‘‘तुम फोन रखो हम तुम्हें कॉल करते हैं।  दरअसल हमें मोबाइल करने वाले बहुत कम लोग हैं। तुमने कॉल की तो ऐसा लगा जैसे कि लाटरी खुल गयी हैं। हम चाहते हैं कि हमारी बकवास पर हमारा ही खर्चा आये।
                        वह मित्र भी कोई ऐसा नहीं था जो हमें चाहता न हो। वह बोला-‘‘मेरे मोबाईल के खाते में पांच सौ रुपये जमा है तुम चाहे जितनी बातचीत कर लो।  कोई दूसरा होता तो हम मान लेते  पर तुम जैसा व्यंग्यकार हमें पटकनी दे यह हमें मंजूर नहंीं। भले तुम्हारे मन में न हो पर हमारे मस्तिष्क में तो है कि तुम व्यंग्यकार हो।
                        सभी मित्र आत्मीय नहीं होते पर जो आत्मीय होते हैं वह व्यवहार में सतर्क रहते हैं। उस मित्र ने बात पूरी करने पर ही फोन बंद किया यह इस बात का प्रमाण था कि वह हमें चाहता है पर सभी लोग ऐसा नहीं करते।  कुछ लोग तो खुश होते हैं कि अपना पैसा बचा।  उस दिन हमारे एक मित्र अपने ही एक रिश्तेदार की शिकायत कर रहे थे कि वह अपना काम होने पर हाल फोन करता है और हम करते हैं तो उठाते ही नहीं है कहते हैं कि फोन चार्ज नहीं था।  कभी कहते हैं कि मैं आफिस में भूल आया। कभी कहते हैं कि मैं अपना फोन बैग में रखता हूं।  वह सरासर झूठ बोलते हैं।
                        इस तरह रिश्तों में संशय के बीज भी यह मोबाइल बो रहा है। सबसे ज्यादा खतरनाक बात यह कि यह आदमी की बुद्धि का हरण कर रहा है। कभी कभी तो यह लगता है कि रिश्तों से ज्यादा मोबाइल का महत्व हो गया है।  वैसे लोग जितनी फोन पर बात करते हैं उससे तो यह लगता है कि भारी कामकाज वाले हैं पर देश की गिरती विकास दर इस बात की पुष्टि नहीं करती कि इस देश के लोग अधिक कमा रहे हैं। न ही इससे यह पता चलता है कि सारे लोगों का धंधापानी जोरदार है। इसका मतलब यह कि मोबाइल फालतू बातचीत का ही साधन बन रहा है। सबसे बड़ी बात यह कि मोबाइल से लोगों का आत्मविश्वास कम हो रहा है।  हर मिनट घर का हालचाल जानने की उत्कंठा इस बात का प्रमाण है कि लोग आशंकाओं के बीच जी रहे हैं। इससे मनुष्य का मनोबल  गिरता है।

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja "Bharatdeep"
Gwalior Madhya Pradesh
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com 

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