पार्क में योग साधना का नियमित कार्यक्रम समाप्त होने के बाद मैं अपनी कांख में दरी और चादर दबाकर अपने घर की ओर चल दिया। चूंकि वर्षों से हमारा कार्यक्रम चल रहा है इसीलिये हमारे रास्ते के बारे में सब जानते हैं, कुछ लोग तो इस तरह हो गये हैं कि जानबूझकर उसी समय मिलने के लिए रास्ते पर खडे हो जाते है। हमें घर पहुंच कर अपने कामकाज निपटाने होते हैं इस कारण जल्दी कदम बढाते हैं ताकि कोई रास्ते में रोके नहीं, अगर कोई जान-पहचान वाला मिल भी जाये तो हम इस तरह निकलने का प्रयास करते हैं कि उसे हमने देखा ही नहीं। कभी सफल होते हैं तो कभी धर लिए जाते है और रूककर लोगों से बात करनी ही पड़ती है।
उस दिन हमें एक सज्जन सामने से आते दिखाई दिए हम उन्हें ज्यादा नहीं जानते थे इसीलिये थोडा उनकी तरफ देख लिया और आगे बढने लगे कि उन्होने कहा,"नमस्कार योगी जीं, मैं आपका ही इन्तजार कर रहा था । आपसे थोडा काम था, और मुझे पता था कि आप रोज यहीं से निकलते हैं ।
मैं समझ गया कि कम से कम आधे घंटे का समय बरबाद हो गया , उनसे कहा-"चलिये घर चलकर बात करते हैं । मैं भी थोडा आज जल्दी में हूँ ।"
अरे नही!"वह बोले-"यहीं बात कर लेते हैं । मैं अपनी बच्ची के रिश्ते की बात चला रहा हूँ मैंने सुना है कि आप उन लोगों को जानते हैं और वह भी आपको बहुत मानते हैं ।
"कौन लोग?"मैंने पूछा।
"वह मिठाई वाले।" वह बोले-"मैंने सुना है आपकी बहुत इज्जत करते हैं। हमें लड़का बहुत पसंद है और उनको भी लडकी एकदम अच्छी लगी है। बस ज़रा दहेज़ पर बात आकर अटक गयी है।"
"आपने उनका लड़का देखने और अपनी लडकी उन्हें दिखाने से पहले क्या दहेज़ के संबंध में बात नहीं की थी? आजकल तो यह काम पहले ही कर लेना चाहिए , समाज में नीतियों की बातें कहने और सुनने में ही अच्छी लगती हैं बाकी तो सब माया के पीछे ही हैं ।"
वह बोले-"साहब ऎसी बात नही है, आख़िर आदमी समाज में रहता है एक दुसरे की बात नहीं मानेगा तो फिर समाज चलेगा कैसे ?"
उन्होंने बताया कि लड़के वालों के बारे में उनको जानकारी मिली थी कि पांच लाख रूपये का दहेज़ मांग रहे हैं । जब दोनों पक्षों को रिश्ता पसंद आया तो लडके वालों ने सगाई के लिए के लिए दो सौ लोगों की एक होटल में रात्री का भोजन कराने के अलावा दहेज़ से अलग पचास हजार की मांग भी की जा रही थी। लडकी वाले का कहना था कि वह पांच लाख के अन्दर ही खर्च करने को तैयार है। लड़के वाले इसके लिए तैयार नहीं थे । लडके के पिता एक तो मेरे को बचपन से मानते थे और मेरे चाचाजी के अच्छे दोस्त थे और उन दिनों शहर के योग शिविरों में उनसे मेरी मुलाक़ात होती थी और उन्होने ही उन सज्जन को मेरे बारे में बताया था । मैंने उनसे वादा किया कि उनके कहे अनुसार उन सज्जन से चर्चा करूंगा।
मैंने उन मिठाई वाले साहब से चर्चा की, और इसका परिणाम यह हुआ कि वह मेरे प्रभाव में आ गये और विवाह संपन्न हो गया। हम भी विवाह समारोह में शामिल हुए ।करीब तीन माह बाद उसी कालोनी एक दुसरे सज्जन मेरे पास आये । उनकी लडकी विवाह योग्य थी, तो पहले वाले सज्जन का लड़का भी विवाह योग्य था। दुसरे सज्जन को मालुम था कि पहले वाले सज्जन की लड़के के विवाह के दौरान कम दहेज़ की रकम कम करवाने में हमारी भी भुमिका थी, और वह वैसा ही मामला था। उन सज्जन ने मुझसे कहा,"हमारी लडकी के रिश्ते की बात उनके लड़के से चल रही है । लड़का एक निजी कालेज में लेक्चरर है और वह दहेज़ में दस लाख माँग रहे हैं। अब आप ही बताईये क्या इतने दहेज़ लायक है ?"
हमने कहा-"यह राशी तो बहुत ज्यादा है, मिठाई वाले का लड़का तो इनके लड़के से ज्यादा पढा-लिखा था और अपने विशाल व्यवसाय के कारण नौकरी नहीं कर रहा था और यह तो एक निजी कालिज में लेक्चरर है, वेतन भी कोई ज्यादा नहीं होगा। "
"आप बात करके देख लीजिये ।"उन सज्जन ने कहा।
अगले दिन हम योग साधना करके घर लौटने से पहले उनके घर की तरफ गये उस समय वह थोडी दूर सडक पर ही मिल गये। पहले तो वह हमें देखकर मुहँ फेरने लगेजैसे वह हमें नहीं जानते या देखा ही नहीं हो , पर हम उनके सामने पहुंच गये और कहा-" नमस्कार, हम आपके ही घर आ रहे थे। आपसे मिलना था।"
उन्होने शुष्क स्वर में बातचीत करते हुए पूछा-"कहिए , किसलिये मिलना चाहते थे?
हमने दुसरे सज्जन से हुई बातचीत के कुछ अंश उनको सुनाए पर और कहा-"उनकी लडकी अच्छी है, आप लेनदेन पर थोडा विचार करें। "
उन्होने हमसे कहा-" मुझे समझ में नहीं आ रहा कि उन्होने आपको कष्ट क्यों दिया ? भई वह और हम एक समाज के है अपने समाज के किसी व्यक्ति को भेज देते। आप भला हमारे समाज की बात कैसे समझ पाएंगे?"
हमें झटका लगा फिर भी हमने हँसते हुए कहा-"मिठाई वाले भी तो आपके समाज के थे पर आप हमारे पास आए कि नहीं -और फिर आपके समधी ने हमारी बात मानी कि नहीं ?"
वह थोडा झेंप गये ,फिर बोले -" अब हम भी क्या करें?" हमारे पास तो पन्द्रह लाख तक के आफर आ रहे हैं और वह दे रहे हैं पांच लाख , बताईये कैसे मान लूं। "
हम हैरान होकर सोचने लगे कि यार इस सज्जन से मैं लड़के-लडकी के रिश्ते की बात कर रहा हूँ या किसी व्यापारिक सौदे की, पर फिर हमने उनको समझाते हुए कहा -"मिठाई वाले साहब तो इतने पैसे वाले थे पर इतना बड़ा दहेज़ तो उन्होने भी नही माँगा था। "
वह खींसे निपौरते हुए बोले-"पर हम तो माँग रहे हैं।"
हमें लगा कि गलत जगह फंस गये हैं , और अब वहां से निकल लें । हमने उनसे कहा-"अच्छा ठीक है मैं उनसे मना कर देता हूँ ।"
वह बोले-"आप भी कहॉ चक्कर में पडे हैं । मेरे लड़के से उसकी लडकी के रिश्ते की बातचीत शुरू होने के पहले मैंने उसे बता दिया था कि कम से कम दस लाख की शादी होगी, फिर उसने आपसे सिफारिश करवा दीं, वह क्या सोच रहा है कि आपने मेरी लडकी की शादी करवाने में मेरी मदद की है तो क्या मैं सस्ते में मान जाऊंगा। अरे, भई हमारा लड़का तो हीरा है हीरा। "
मैं उनका चेहरा देख रहा था और मुझे वह दिन आया जब वह मिठाई वाले के लड़के से अपनी लडकी के रिश्ते की बात करने मेरे पास आये थे -उस समय उनके चहरे पर जिस बैचारागी के भाव थे और आज आखों से अहंकार टपक रहा था। मैंने उनसे विदा ली और सोच रहा था कि इस रंग बदलती दुनियां में आदमी जिस तरह जितने रंग बदलता है उससे तो गिरगिट भी शरमा जाएगा।
2 comments:
दीपक भाई आपकी बात अत्यंत चिंतनीय है, गिरगिट का रूप तो ईश्वर ने दिया है मगर मनुष्य कोई भी रूप धर सकता है,..
सुनीता(शानू)
बहुत सही कहा आपने। खैर इनसे सबक लीजिए और आगे से ऐसे लोगों के चक्कर में पड़िए ही मत।
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