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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

8/18/07

कौटिल्य अर्थशास्त्र


  1. जिस राजा के शास्त्र रूपी नेत्र नहीं है वह राजा अँधा है। नेत्रों वाला अंधा अच्छा नहीं है, जिसने मद से सन्मार्ग बिगाड़ दिया है।

इसका आशय यह है के जिस राजा को अपना ज्ञान नहीं है वह दूसरों की सलाह से ही अपने निर्णय लेता है और सलाह देने वाले उसे अपने स्वार्थ के लिए उपयोग करते हैं उन्हें प्रजा के हित से कोई सरोकार नहीं होता और इसलिये ऐसे राज्य की प्रजा को वाणी का पड़ते हैं.
२. राजा शास्त्र ही के नेत्र वाला है। वह महा अमात्यों के मार्ग में स्थित हुआ हो। धर्म अर्थ के प्रतिघात करने वाले व्यसनों को त्याग दे।
३. जो राजा व्यसन ग्रस्त न हो वही राज्य के व्यसन दूर करने में समर्थ है अन्यथा वह अपने विशाल राज्य के व्यसन दूर नहीं कर सकता।

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