इस बात को सभी जानते और मानते हैं कि जीवन को ऊपर उठाने के लिए हृदय, चित्त और मन को शुद्ध करना जरूरी है। मन का मैल निकाले बिना न लोक सुधरता है न परलोक सुधरता है।
मन का मेल निकाले बिना न साधना होगी न भक्ति। मन का मैल निकले बिना न कर्म पवित्र होगा न ज्ञान की ही प्राप्ति होगी। साधू, संत, फकीर और माहात्मा चित्त को निर्मल करने पर इसीलिये जोर देते हैं।
मन का मैल कैसे निकले? चित्त की मलिनता कैसे मिटे इसके लिए महर्षि पंतजलि ने ऐक बढ़िया साधन बताया है-मैत्री, करुणा, मुदिता (हर्ष का भाव) और उपेक्षा के भाव का विकास। योग सूत्र में उन्होने कहा है कि-
सुखी व्यक्ति के लिए मैत्री की भावना अपने अन्दर पैदा करो।
दुःखी व्यक्ति के लिए करुणा का भाव अपने अन्दर स्थापित करो।
पुण्यात्मा के लिए मुदिता(हर्ष का भाव) की भावना रखो।
पापात्मा के प्रति उपेक्षा का भाव रखो;
ऐसा करने से चित्त प्रसन्न और निर्मल बनता है।
शब्द तो श्रृंगार रस से सजा है, अर्थ न हो उसमें क्या मजा है-दीपकबापूवाणी
(Shabd to Shrangar ras se saja hai-DeepakBapuwani)
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*बेपर इंसान परिदो जैसे उड़ना चाहें,दम नहीं फैलाते अपनी बाहे।कहें दीपकबापू
भटकाव मन कापांव भटकते जाते अपनी राहें।---*
*दीवाना बना ...
5 years ago
3 comments:
बात तो सही लग रही है ।
घुघूती बासूती
सत्य है दीपक जी।
बेहद सुंदर और सरगर्भीत , अच्छी रचना और अच्छी सोच यदि अच्छी भावनाओं के साथ
परोसी जाए तो होठों से वाह निकलना लाज़मी है. इस क्रम को बनाएँ रखें....../
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