इस बात को सभी जानते और मानते हैं कि जीवन को ऊपर उठाने के लिए हृदय, चित्त और मन को शुद्ध करना जरूरी है। मन का मैल निकाले बिना न लोक सुधरता है न परलोक सुधरता है।
मन का मेल निकाले बिना न साधना होगी न भक्ति। मन का मैल निकले बिना न कर्म पवित्र होगा न ज्ञान की ही प्राप्ति होगी। साधू, संत, फकीर और माहात्मा चित्त को निर्मल करने पर इसीलिये जोर देते हैं।
मन का मैल कैसे निकले? चित्त की मलिनता कैसे मिटे इसके लिए महर्षि पंतजलि ने ऐक बढ़िया साधन बताया है-मैत्री, करुणा, मुदिता (हर्ष का भाव) और उपेक्षा के भाव का विकास। योग सूत्र में उन्होने कहा है कि-
सुखी व्यक्ति के लिए मैत्री की भावना अपने अन्दर पैदा करो।
दुःखी व्यक्ति के लिए करुणा का भाव अपने अन्दर स्थापित करो।
पुण्यात्मा के लिए मुदिता(हर्ष का भाव) की भावना रखो।
पापात्मा के प्रति उपेक्षा का भाव रखो;
ऐसा करने से चित्त प्रसन्न और निर्मल बनता है।
भ्रमजाल फैलाकर सिंहासन पा जाते-दीपकबापूवाणी (bhramjal Failakar singhasan
paa jaate-DeepakbapuWani
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*छोड़ चुके हम सब चाहत,*
*मजबूरी से न समझना आहत।*
*कहें दीपकबापू खुश होंगे हम*
*ढूंढ लो अपने लिये तुम राहत।*
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*बुझे मन से न बात करो*
*कभी दिल से भी हंसा...
6 years ago
3 comments:
बात तो सही लग रही है ।
घुघूती बासूती
सत्य है दीपक जी।
बेहद सुंदर और सरगर्भीत , अच्छी रचना और अच्छी सोच यदि अच्छी भावनाओं के साथ
परोसी जाए तो होठों से वाह निकलना लाज़मी है. इस क्रम को बनाएँ रखें....../
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