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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

9/4/07

आज श्रीकृष्ण जन्माष्टमी है

आज श्रीकृष्ण जन्माष्टमी है। चारों तरफ उल्लास, भक्ति और प्रार्थनाओं के पवित्र वैतरणी प्रवाहमान दृष्टिगोचर होगी। ऐसा क्यों न हो? जिसका संदेश ज्ञान और विज्ञान से परिपूर्ण है उन भगवान् श्री कृष्ण की भक्ति जो करते हैं उनमें प्रेम, अहिंसा और दया के भाव दीपक की तरह सदैव प्रकाशित होते हैं।
भगवान श्री कृष्ण को महायोगेश्वर भी कहा जाता है। श्रीमद भागवत गीता केवल भारत ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व की ऐक अनुपम धरोहर है और जिसका ज्ञान कभी प्राचीन नहीं होता क्योंकि वह शाश्वत सत्य है। उनके जितने भक्त हैं वह उनके उतने ही स्वरूप हैं। हर कोई अपने मन में स्थित स्वरूप के अनुसार उनकी भक्ति करते हैं। मेरे मन में उनके दिव्य चरित्र का ऐक स्वरूप है पर उसकी चर्चा करना कठिन है । ऐक तो उसके लिए शब्द मिलना कठिन है दूसरा थोडा प्रयास कर व्यक्त किये जाएँ तो फिर भक्तो से वाद-विवाद हो सकता है। क्योंकि हर कोई यह चाहता है कि उसके मन में जो स्वरूप हैं वही दूसरे के शब्द और भाव में भी व्यक्त हो। अगर आप कहीं उनके स्वरूप को व्यक्त कर्रें तो सब लोग अपने अंतर्मन में स्थित स्वरूप को व्यक्त करेंगे और भक्ति छोड़ कर प्रवक्ता बन जायेंगे।
यही स्थिति श्रीमद भागवत गीता की ज्ञान चर्चा के बारे में है। गीता गूढ़ रहस्यों से परिपूर्ण पवित्र ग्रंथ है और उसके हर श्लोक में शाश्वत सत्य दृश्व्य है। मैं उसके ज्ञान की चर्चा भी यहाँ नहीं कर सकता क्योंकि भगवान श्री कृष्ण ने उसे केवल अपने भक्तों में ही उसे चर्चा योग्य बताया है और दूसरे यहाँ थोड़े समय में यह संभव भी नहीं है।
भगवान श्री कृष्ण के और श्रीमद भागवत गीता को भक्ति और जिज्ञासा के भाव से पढने वाले भक्तों की कोई कमी नहीं है। भारत से लेकर अमेरिका तक उनके भक्त फैले हैं। सबसे बड़ी बात उनके ज्ञान, चरित्र और संदेश पर अन्य धर्मों के लोग भी प्रसन्नता पूर्वक चर्चा करते हैं-और उनके संदेशों पर पश्चिमी देशों में अनुसंधान हो रहा है। भगवान श्री कृष्ण का ने जीवन को सहज भाव से लेने का संदेश दिया है वह आज ज्यादा प्रासंगिक है, क्योंकि पहले लोग प्राकृति के निकट रहते थे और उनमें सहजता का भाव सहजता से रहता था इसलिये उन्हें यह संदेश अपने लिए ज्यादा महत्वपूर्ण नही न लगता रहा होगा। । पर आज विश्व में भौतिक साधनों की प्रचुरता ने आदमी को प्राकृति आनंद से दूर कर दिया है और अब उसे निकट जाने के लिए उसे स्वांग करने पड़ते हैं। कभी पिकनिक तो कभी पर्यटन और तीर्थ पर जाकर वह उस सुख की अनुभूति करना चाहता है जिसे उसने अंधी दौड़ में गँवा दिया है।

आजकल इन्सान आधुनिक भौतिक साधनों को पाने की दौड़ में वह तन्मयता से लगा रहता है और फिर उसके उपयोग से अपने शरीर और मन को इतना आलसी बना देता है कि दुनिया भर के रोगों के कीटाणु उसकी देह को अपना घर बना लेते हैं। वह चिकित्सक के पास अपने रोग के निवारण के लिए जाता है और जो उसे कुछ दवाएं लिख कर देता है और कहता है 'सुबह ताजी हवा लो और टेंशन मत करो'। सारी दुनिया जानती हैं कि दवाईयां रोग नहीं मिटाती है बल्कि उसका प्रतिरोध करती हैं-सुबह की ताजी हवा, तनाव रहित जीवन और खानी-पीने पर नियंत्रण से ही रोग मिटता है। अगर उन दवाओं से रोग मिटता होता तो चिकित्सक क्यों सुबह घूमने ,खाने से परहेज और तनाव रहित होने की सलाह देते हैं। स्पष्टत:शारीरिक और मानसिक अनुशासनहीनता से ही रोग फैलते हैं और और नियंत्रण करने से मिटते हैं-दवाईयों की भूमिका तो नाममात्र की है। भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद भागवत गीता में विषाद रहित, स्वस्थ, उल्लास से परिपूर्ण, और भक्ति भाव से जीने का जो मार्ग दिखाया है उसका अनुसरण करें तो भला चिकित्सा घरों के मार्ग पर चलने की आवश्यकता ही क्यों पडे? जिस देह को भगवान् के मंदिर में ले जाकर भजन करना चाहिऐ उसे चिकित्सकों के यहाँ लगने वाली लाइन में खड़ा करें तो इसमें हमारी ही कमी और अज्ञानता उजागर होती है जबकि श्रीमद भागवत गीता में सहजता पूर्वक जीवन व्यतीत करने का संदेश मौजूद है।
जिन भगवान श्री कृष्ण ने पूरे विश्व को शाश्वत सत्य से परिचित कराया, जिन्होंने अर्जुन को अपने विराट स्वरूप के दर्शन कराए और जिन्होंने हाथी को ग्राह से बचाया उन्हें मेरा कोटि-कोटि नमन। वह सदबुद्धि, ज्ञान और अपनी भक्ति प्रदान करें, जिससे इस भवसागर को सहजता से पार कर सकूं। जय श्री कृष्ण

5 comments:

Anonymous said...

ज्ञानवर्ध्क लेख है।

अन्नपूर्णा

Anonymous said...

ज्ञानवर्धक लेख है

अन्नपूर्णा

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत ज्ञानवर्धक लेख है.आप को जन्माष्टमी की बहुत-बहुत बधाई।

Udan Tashtari said...

जानकारी बहुत बढ़िया लगी. आभार.

श्री कृष्ण जन्माष्ट्मी के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामना.

रवीन्द्र प्रभात said...

सुंदर और गहरी अभिव्यक्ति है, बढ़िया जानकारी ,जन्माष्टमी की बहुत-बहुत बधाई।

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