- द्यूत (जुआ) में बहुत अनर्थ है। द्यूत से आपस में स्नेह का क्षय होता है। द्यूत से अपने पक्ष वालो में भेद होता है।
- राजा नल का भी जुआ खेलने के कारण राज्य का हरण हो गया था जिसने अपनी धर्म पत्नी दमयंती को भी वन त्यागकर दुसरे की सेवा की।
- पांडू के पुत्र धर्मराज दुसरे लोकपाल के समान प्रसिद्ध थे पर फिर द्यूत रुपी अनुचित काम के अपनी प्रिय पत्नी द्रोपदी को दाव पर लगाकर हार गए।
- जो रुक्मी इन्द्र के समान बलवान था, और जिसके मुकाबले का का कोई धनुर्धर कोई नहीं था वह जुए खेलने के कारण बलराम जी हार गया।
- कौशिक रूप देशों का राजा मंदबुद्धि दन्तवक्र इस जुए की सभामें बैठने से बलराम जी पर हंसने के कारण ही अपने दांत तुडा बैठा था।
- इसलिए अनेक दोषों वाले द्यूतकर्म (जुआ) का त्याग कर दिया जाये। इसमें कोई गुण नहीं है। इससे तो अच्छा है की बुद्धिमान और ज्ञानी लोगों के साथ बैठकर सत्संग किया जाये।
भ्रमजाल फैलाकर सिंहासन पा जाते-दीपकबापूवाणी (bhramjal Failakar singhasan
paa jaate-DeepakbapuWani
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*छोड़ चुके हम सब चाहत,*
*मजबूरी से न समझना आहत।*
*कहें दीपकबापू खुश होंगे हम*
*ढूंढ लो अपने लिये तुम राहत।*
*----*
*बुझे मन से न बात करो*
*कभी दिल से भी हंसा...
6 years ago
3 comments:
सही कहा आपने, जुआ में अनेको दोष है. महाभारत से भी हमे यही सीख मिलती है. द्यूत तो काम ही धूर्तों का है. वैसे सुना है "share market" भी एक तरह का द्यूतकर्म ही है. आपकी क्या राय है.
उत्तम विचार मगर फिर भी आकर्षित करता है जुआँ..पता नहीं क्या राज है. :)
विचार उत्तम है भाई साहब ,बहुत उत्तम , मगर जुए में आकर्षण भी बहुत है , राजा हो अथवा रंक कोई भी इससे अछूता नही है .
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