इस बार सूर्य ग्रहण एकदम सुबह पड़ा था। सभी दरवाजे शाम से ही बंद थे पर जिनका शाम को भगवान के दर्शन करने का कार्यक्रम होता है वह बाहर से हाथ जोड़कर चले गये। सुबह भी अनेक लोग अपने काम पर जाते हुए बाहर से प्रणाम करते गये। सावन का माह होने के कारण अनेक लोग मूर्तिर्यों पर जल चढ़ाने जाते हैं इस बार भी गये। जहां मंदिर का मुख्य दरवाजा खुला पर मूर्तियों का दरवाजा बंद था वहां वह अंदर जाकर पेड़ पौद्यों पर पानी चढ़ा कर अपने भक्ति भाव का निवर्हन कर आये। । उन्हें इस बात की परवाह नही थी कि मूर्ति उनको बाहर से दिख रही है कि नहीं या सूर्य ग्रहण चल रहा है। यह सच्चा भक्त भाव है जिसमें मनुष्य अन्य बातों से परे होकर केवल अपने इष्ट को समर्पित होता है। कुछ लोग मूर्तियों को पूजना अंधविश्वास मानते हैं पर सच तो यह है कि यह भी ध्यान में सहायक होती हैं। जो निरंकार का ध्यान नहीं कर पाते वह इन्हीं मूर्तियों के माध्यम से उसका लाभ उठाते हैं। याद रहे यह ध्यान हमारी सबसे बड़ी ताकत होता है।
अंध विश्वास तो वह है जो सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण पर अनेक तरह के प्रतिबंध लगाता है। उसे भक्ति तो माना ही नहीं जा सकता। अनेक लोग नियमित रूप से मंदिर जाते हैं पर वह इन अवसरों पर रुक जाते हैं जबकि सच्चे भक्त कभी भी इसकी परवाह नहीं करते उनके लिये तो मंदिर का बंद दरवाजा भी उस समय मूर्तिमान हो जाता है। ऐसे लोगों को देखकर मन गदगद्कर उठता है। जय श्री कृष्ण।
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