समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

2/20/10

सनसनी में अध्यात्मिक संदेश-आलेख

लूट और डकैती की घटनायें टीवी चैनलों के लिये सनसनी फैलाने वाली विषय वस्तु होती हैं। गनीमत है टीवी चैनलों के उद्घोषक सनसनी फैलाने तक ही सीमित रहते हैं और चंद वाक्यों को कई बार दोहराकर अपना काम चलाते हैं-कोई उसमें अध्यात्मिक ज्ञान तलाश करने का प्रयास नहीं करता। अगर कोई ऐसा करे तो हमारे जैसे आदमी के लिये कुछ लिखने या कहने का अवसर ही न बचे। यही कारण है कि डकैती डालने गये पांच लोगों के समूह से एक का हाथ दीवार में लगीअल्मारी में फंसे रह जाने की घटना सनसनी खेज होने के बावजूद अध्यात्मिक संदेश प्रदान करने वाली है पर किसी चैनल वाले ने उसे ढूंढने का प्रयास नहीं किया और हम यह प्रयास कर रहे हैं।  
किस्सा भरतपुर का बताया गया है। टीवी चैनलों के अनुसार एक पेट्रोल पंप पर पांच लुटेरे बंदूक और तलवारें लेकर पहुंचे। वह पेट्रोल पंप रात को बंद रहता है और उसके कर्मचारी अंदर सो रहे थे। लुटेरों ने उन पर हमला किया और बंदूक और तलवार की शक्ति पर उनसे लाखों रुपये की रकम छीन ली। असहाय कर्मचारी कुछ कर भी नहीं सकते थे। लुटेरे चले जाते पर उनकी नजर दीवार की अल्मारी पर चली गयी। उन्होंने कर्मचारियों से चाबी मांगी पर उन्होंने बताया कि ‘वह तो मालिक के पास रहती है’।
बंदूक और तलवार हाथ में लिये मदांध लुटेरों के लिये ताला कौनसी बड़ी बात है? सो उन्होंने उसे तोड़ डाला। एक लुटेरे ने अल्मारी के अंदर जोर से हाथ डाला तो उसमें लगा संवेदनशील यंत्र जाग उठा और दरवाजा बंद हो गया। अब उसमें फंसा था लुटेरे के हाथ का पंजा! वह चीखने लगा क्योंकि अंदर फंसे हाथ में हथियार नहीं था और उसके शेर की तरह दहाड़ने वाली आदमी मेमने की तरह मिमियाना लगता है। सबसे बड़ी बात यह है कि जिसने हाथ पकड़ा था उसके प्राण भी नहीं लिये जा सकते थे क्योंकि वह उसमें होते ही नहीं। जो लुटेरा कुछ देर पहले हथियार के दम पर पेट्रोल कर्मचारियों को धमका रहा था अब अपना हाथ फंसने से आर्तनाद कर रहा था। इधर सवेरा होने को था। लुटेरों को पुलिस का भय सताने लगा और अंततः उन्होंने अपने साथी के हाथ का पंजा अपनी ही तलवार से काट डाला। जिस तलवार को वह दूसरे को मारने के लिये निकले थे वह उन्हें अपने ही विरुद्ध उपयोग करनी पड़ी-सच है हथियार हमेशा ही आदमी के मित्र नहीं होते बल्कि कभी वह अपने स्वामी का ही सत्यानाश कर देते हैं।
हाथ का पंजा कटने से वह लुटेरा चीख पड़ा और उसके साथी उसे लेकर भाग गये। एक लुटेरा जो हाथ में पाप से पैसा बटोरने आया था अपना पंजा गंवाकर लौट रहा था जिसके बिना हाथ का होना या न होना बराबर हो जाता है। पता नहीं पुलिस वहां उनके रहते पहुंचती कि नहीं या फिर लुटेरे बंदूक की गोलियां इस्तेमाल कर उस अल्मारी का हुलिया बिगाड़ कर उसका हाथ बचा सकते थे कि नहीं, मगर सच यह है कि जब अपराध सिर चढ़कर बोलता है तो फिर बुद्धि काम नहीं करती कोई दूसरा सजा दे या नहीं पर पाप ऐसा डर पैदा करता है कि आदमी खुद को ही सजा देता है। जिन लोगों को दोनों हाथ सलामत है उनको शायद इस बात का अंदाजा नहीं होगा कि अपना हाथ का पंजा कटते हुए उस लुटेरे की क्या हालत हुई होगी।
पुराने समय में एक किस्सा भी आता है कि एक आदमी एक संत से शिकायत कर रहा था कि ‘भगवान ने उसे गरीब क्यों बनाया है?’
संत ने उससे कहा कि ‘ठीक है तुम अपनी एक आंख दे दो और मेरे से बहुत बड़ी रकम ले लो।’
इस तरह उन्होंने उसे हर अंग की कीमत लगाई पर वह आदमी देने को तैयार नहीं हुआ क्योंकि उसकी समझ में आ गया था कि भगवान ने तो उसे बेशकीमती अंग दिये हैंे।
फिल्म शोले में गब्बर सिंह नामक पात्र द्वारा ठाकुर नाम के पात्र काटने का दृश्य देखकर तो बच्चे आज भी सिहर उठते हैं। जिस समय लुटेरों ने अपने ही साथी का पंजा काटा होगा तब पेट्रोल पंप के कर्मचारी भी सिहर गये होंगे-हालांकि वह सिहरे तो पहले ही होंगे पर इस दृश्य को देखकर अपनी पुरानी सिहरन कुछ पल के लिये याद नहीं रही होगी। लुटेरों ने भी उस समय जरूर नहीं सोचा होगा क्योंकि उस भय से संवेदनायें मर जाती हैं, पर जिसका हाथ गया है यह घटना जीवन भर उसे कंपाती रहेगी। पुलिस और कानून तो अब वैसे ही उनको दंडित करने के लिये पीछा करेगा। वह हाथ एक तरह से सबूत बन गया है। पकड़े जाने पर लुटेरो को उसका हाथ दिखाया जायेगा तब उसकी जो हालत कम दर्दनाक नहीं होगी। वह उन पलों को कोस रहा होगा जब उसकी और साथियों की नजर उस अल्मारी पर गयी होगी। भले ही वहां बड़ी रकम थी पर अब उसके न मिलने से अधिक पंजा गंवाने का मलाल उन सभी लुटेरों में होगा। आखिर यह कैसे संभव है कि कोई आदमी अपने अंगों के प्रति संवेदनशील न हो।
वैसे कुछ देशों में चोरों को हाथ काटने की सजा देने का प्रावधान है और सभ्य देश इसका विरोध करते हैं। इस घटना को उस परिप्रेक्ष्य में नहीं देखना चाहिये क्योंकि यहां तो लुटेरे ने अपना हाथ अपने ही पापी साथियों की वजह से गंवाया है। दूसरे दंड तो सर्वशक्तिमान ने स्वयं दिया है और वह भी बिल्कुल अपराध करने की जगह पर न कि किसी इंसानी शक्ति ने दिया है।
इसमें अध्यात्मिक संदेश जो निकलता है वह इस प्रकार है
1-दुष्ट की संगत हमेशा स्वयं के लिये घातक होती है-उस लुटेरे ने ऐसे लोगों से संगत पाली जो दुष्ट थे। वह खुद भी दुष्ट बना और अंततः उन्हीं साथियों ने ही उसका हाथ काट डाला।
2.हमारे हर काम पर सर्वशक्तिमान की नजर रहती है-न पुलिस न कोई दूसरा पहरेदार वहां था पर लुटेरे का हाथ पकड़ा गया। कोई इंसानी शक्ति वहां नहीं थी तो उसका हाथ पकड़वाने वाला कौन था? सर्वशक्तिमान ही न!
3.बुरे काम का बुरा नतीजा-बुरे आदमी को सजा नहीं मिलती यह केवल वहम है। जब पाप का घड़ा फूटता है तो पापी के सिर पर ही फूटता है।
अभिप्राय यही है कि जो लोग संक्षिप्त मार्ग से पैसा कमाने की सोचते हैं उन्हें अब इस बात पर भी विचार करना चाहिये कि आजकल लोगों ने अपनी रक्षा के लिये अनेक विद्युतीय साधन बना लिये हैं और लूट, डकैती और चोरी काम करने में ढेर सारे खतरे हैं। जान जाये तो एक बात अगर हाथ ही कट गये तो फिर इंसान रहा किस काम का! ऐसा हर काम जिसमें अपराध का थोड़ा भी अंश हो उससे दूर रहना चाहिये। सबसे बड़ी बात यह कि सनसनी में भी अध्यात्मिक संदेश जरूर ढूंढना चाहिये।

कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anantraj.blogspot.com
-----------------
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका

1 comment:

संगीता पुरी said...

ऐसा हर काम जिसमें अपराध का थोड़ा भी अंश हो उससे दूर रहना चाहिये। सबसे बड़ी बात यह कि सनसनी में भी अध्यात्मिक संदेश जरूर ढूंढना चाहिये।

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

विशिष्ट पत्रिकायें