मित्र के साथ चाय की दुकान पर गये तो मैच चल रहा था। सचिन अच्छी बल्लेबाजी कर रहा था। हम कभी चाय पीते तो कभी अखबार पढ़ते। हमारा मित्र एकटक मैच देख रहा था। चाय खत्म हुई तो हमने मित्र से कहा ‘चलो।’
वह बोला-‘रुको यार, सचिन का शतक देखकर चलते हैं।’
हमने देखा वह नब्बे पर खेल रहा है। हमने कहा-‘ठीक है, तुम यहां देखो हम पास की दुकान से खरीददारी कर लौटते हैं।’
मित्र बोला-‘यार, रुको! अजीब आदमी हो! सचिन अभी नब्बे पर खेल रहा है।’
हमने कहा-‘मै इस लिये तो जा रहा हूं। उसके शतक तक लौट आऊंगा।’
कुछ देर बाद हम लौटे। सचिन का शतक पूरा हुआ। हमने ताली बजाई तो मित्र की एकाग्रता टूटी और वह बोला-‘मजा आ गया! देखो तुम भी खुश हुए न सचिन का शतक देखकर! इसलिये ताली भी बजाई।’
हमने कहा-‘नहीं! ताली तो हमने तुम्हारे चेतना लाने के लिये बजाई थी कि अब उसका शतक हो गया है अब चलो।’
मित्र ने वहां से हटते ही कहा‘‘जब मैंने तुमसे कहा कि सचिन नब्बे पर ख्ेाल रहा है तब तुमने कहा था कि इसलिये तो जा रहा हूं! इसका क्या मतलब!’
हमने कहा-‘ऐसे ही कहा था!’
शाम को हम घर जाने से पहले एक दुकान पर रुके वहां देखा तो सचिन 190 पर था। ओवरों की संख्या देखकर हमें लगा कि वह शायद ही अपना दोहरा शतक पूरा करे।
उसके बाद दूसरी दुकान पर पहुंचे। वहां भीड़ देखकर हमें आश्चर्य हुआ। जब अंदर प्रविष्ट हुए तो पता लगा कि वहां टीवी पर चल रहा मैच लोग देख रहे हैं। दुकान बड़ी थी लोग बाहर खड़े होकर कांच से वह मैच देख रह थे।
दुकान मालिक से अपने लिए बिस्कुट का पैकैट मांगा तो वह बोला-‘साहब एक मिनट रुकिये यह आखिरी दो ओवर रह गये है।’
हमने थोड़ी देर सोचा और बाहर जाने लगे कि अचानक हमारे कान में स्वर गूंजा-‘आज सचिन दुहरा शतक करेगा।’
अब हमने सोचा कि चलो पूरा मैच ही देखकर चलते हैं। बात आखिरी ओवर तक पहुंच गयी थी। लोग इस बात को लेकर चिंतित थे कि सचिन दोहरा शतक पूरा करे और अंग्रेजी कमेंट्टर की यह बात उनके समझ में नहीं आई कि भारतीय टीम का कप्तान धोनी वहां अपनी टीम को चार सौ के आंकड़े के पार ले जाना चाहता था।
धोनी ने पहली ही गेंद पर च ौका लगाया तो लोगों का मुंह सूख गया।’
एक ने कहा-‘गुरु, यह सचिन से जलता है, उसे दोहरा शतक पूरा नहीं करने देगा। देखना पूरा ओवर खुद ही खेलेगा।’
दूसरा बोला-‘अपने देश के क्रिकेट खिलाड़ियों में एक दूसरे के प्रति जलन बहुत है।’
तीसरी गेंद पर जब एक रन बना तब लोग खुश हो गये। एक आदमी बोला-‘वह तो गेंद बाहर ही चली गयी होती। धोनी ने तो उसे मारा ही इस तरह था। भला हो उस फील्डर का जिसने गेंद रोकी। अब तो सचिन को मौका मिल गया।’
सचिन के दो सौ रन पूरे हुए। वहां खड़े लोगों ने तालियां बजाई अगली गेंद को धोनी ने तेजी से मारा पर फील्डर ने रोक लिया। वहां रन हो सकता था पर सचिन ने मना किया। 397 के स्कोर पर खड़ी बीसीसीआई की टीम को चार सौ रन के पार पहुंचाने का दायित्व सचिन ने धोनी पर ही छोड़ा। कप्तान धोनी ने इस दायित्व का निभाया।?
कमेंट्टरों ने बता दिया था कि पिच गेंदबाजों के लिये मददगार नहीं है। दूसरा यह भी बताया कि चार सौ रन का एक मनोवैज्ञानिक दबाव होता है जो 397 में नहीं होता।
दक्षिण अफ्रीका की टीम ने एक बार आस्ट्रेलिया के खिला्फ 437 पर का स्कोर पार किया था। हमने वह मैचा देखा था? ऐसा मैच हमने नहीं देखा। उस मैच में हारने के बावजूद रिकी पौंटिंग को अधिक रन के आधार पर मेन आफ मैच दिया जा रहा था पर उसने लेने से मनाकर अफ्रीका के उस खिलाड़ी को देने के लिये कहा जिसने उनसे केवल एक रन कम बनाया था। रिकी पौंटिंग में कहा था कि मैंने तो बिना दबाव के सारे बनाये पर उसने तो कमाल ही कर दिया भले ही मुझसे एक रन कम बनाया।’
बीसीसीआई की टीम के 401 रन कर लक्ष्य का पीछा करने के लिये उतरी दक्षिण अफ्रीका की टीम ने वैसे ही तेवर दिखाये। वह आठ के औसत से रन चल रहे थी। श्रीसंत ने एक के बाद एक झटके देकर अफ्रीका को संकट में डाला। सच तो यह है कि हाशिम अमला का विकेट लेकर उसने दक्षिण अफ्रीका के खिलाड़ियों को सांसत में डाला जिससे वह फिर नहीं उबरे। यही इस मैच का टर्निंग पोईंट था। अमला का विकेट गिरते ही हमने मान लिया कि चाहे जितना भी दक्षिण अफ्रीका की टीम कितना भी लड़े पर उबरेगी नहीं। श्रीसंत ने तीन विकेट ऐसी पिच पर लिये जहां गेंदबाजों को मदद न के बराबर थी। कायदे से मेन आफ दि मैच ऐसे बल्लेबाज को दिया जाता है जिसने गेंदबाजों के लिये मददगार पिच पर रन बनाये हों। उसी तरह उस गेंदबाज को दिया जाता है जो बल्लेबाजों की मददगार पिच पर विकेट ले। भारत के पास बहुत सारे बल्लेबाज थे। अगर सचिन दो सौ नहीं बनाते तो दूसरे बनाते। सचिन ने 147 गेंद पर 200 रन बनाये। इसका मतलब यह है कि बाकी बल्लेबाजों ने 153 गेंद पर 201 रन बनाये। इस आधार पर मारक औसत उनका टीम से कोई अधिक बेहतर नहीं था।
मुश्किल यह है कि क्रिकेट साहबों का गेम है। शुरुआत में अंग्रेज साहब स्वयं बल्लेबाजी करते थे और उनके गुलाम गेंदबाजी में अपना दम लगाते थे। यही कारण है कि क्रिकेट में गेंदबाजों को अधिक महत्व नहीं दिया जाता। हमारे देश ने इस सुस्त खेल को एक दिन की लंबी फिल्म की तरह अपना लिया है। लोग खेल की बारीकियां उतनी ही जानते हैं जितना कि खेल देखने में आनंद आये। लोग बल्लेबाजों के आकर्षण से अधिक प्रभावित है और गेंदबाजों को तो एक तरह से वह एक आम नौकर की तरह समझते हैं। उस मैच में धोनी अपनी टीम को चार सौ के पार देखना चाहते थे पर फिल्म की तरह देखने की आदी लोगों को सचिन के दोहरे शतक में बाधा के कारण खलनायक की तरह लगे। धोनी के मन में क्या रहा होगा वह जाने पर लोगों को शक था कि वह सचिन का दूसरा शतक पूरा होने में बाधा बन सकते हैं। हमेशा उसका चौका देखने वाले लोग ही यह सोच रहे थे वह एक रन लेकर सचिन को मौका दे। वाह रे मेरे महान भारत के महान नागरिकों! क्या क्रिकेट मैच फिल्म की पटकथा की तरह लिखा जाता है कि यह होना चाहिये या यह नहीं। अगर कल भारत 401 रन बनाकर भी हार जाता तो क्या होता? यकीन मानिये अनेक लोग सचिन पर बरस रहे होते जिसने नब्बे से सौ और 190 से 200 तक पहुंचने में समय अधिक लिया। श्रीसंत ने बेहतर गेंदबाजी का दूसरा और तीसरा विकेट जल्दी नहीं निकाला होता तो सचिन के दोहरे शतक पर पानी भी फिर सकता था। तब इतनी तारीफ उसे नहीं मिलती क्योंकि भवावेश में आकर कुछ लोग सचिन के खेल को अभिनय समझ रहे हों पर मैदान में खिलाड़ी के दिमाग में बस अपनी टीम को जितवाना ही लक्ष्य रहता है। कप्तान धोनी कोई सचिन का सहायक अभिनेता बनकर मैदान में नहीं आया था बल्कि वह स्वयं भी ऐसा महान खिलाड़ी है जिसने बीस ओवरीय प्रतियोगिता में भारत को विश्व कप जितवाया। 35 गेंद पर 65 रन बनाकर भारत को एक मजबूत स्थिति में पहुंचाने के लिये उसका योगदान कम नहीं था। आज भी अनेक जगहों पर सचिन की चर्चा ऐसे ही देखी जैसे किसी फिल्म अभिनेता की फिल्म की होती है। अब यह समझ में आया कि आखिर फिल्म और क्रिकेट व्यवसायी आपस में मिलकर काम क्यों कर रहे हैं? फिल्म की तरह क्रिकेट भी मनोरंजन व्यवसाय हो गया है। लोग खेल प्रेम से अधिक दृश्य प्रेम से प्रभािवत हैं। उनके मानसिक उतार चढ़ावों में खेल जैसे नहीं बल्कि फिल्म की कहानी की तरह उतार चढ़ाव आते हैं। शायद यही कारण है कि ऐसी खबरे आती हैं कि अमुक आदमी का खेल देखते हुए दिल के दौरे के कारण स्वर्गवास हो गया। यकीनन खेल भावना रखने वालों को ऐसी घटनाओं से ज्यादा आघात नहीं पहुंचता न ही वह इतने प्रसन्न होते हैं।
कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियरhttp://anantraj.blogspot.com
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