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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

2/6/10

सीधे प्रसारित होने वाली फिल्म की पटकथा लगती है अनेक घटनायें-हिन्दी आलेख (film aur patkatha-hindi lekh)

फिल्मों में सक्रिय एक अभिनेता ने स्वीकार किया कि ‘आज के फिल्मी माहौल’ में वह स्वयं को फिट नहीं पाते।  इस अभिनेता के पिता ने जहां अभिनय कर देश में लोकप्रियता हासिल की वहीं उसने स्वयं भी काम कर एक दबंग अभिनेता की छबि बनाई। पिता से अधिक पुत्र के अभिनय का यह लेखक कायल रहा। पंजाबी पृष्ठभूमि के इस अभिनेता ने सीधे कुछ नहीं कहा पर सांकेतिक शब्दों में यह समझा दिया कि आजकल फिल्म में अभिनय करना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि कुछ विवाद खड़े कर उसकी आगे की विकास यात्रा भी करवाना भी जरूरी है।
आवाज और अदाकारी के धनी उस प्रतिभाशाली अभिनेता की अनेक दिनों से कोई फिल्म नहीं आयी है और ऐसा लगता भी नहीं है कि निकट भविष्य में आने वाली है।  उसके पिता का जीवन भले ही थोड़े बहुत विवादों से घिरा रहा है पर पुत्र ने तो केवल अभिनय से वास्ता रखा और उसे मजबूत अभिनेता माना जाता है। 
दरअसल आजकल फिल्म का व्यापार इतना हो गया है कि उसमें से पैसा कमाने का प्रयास और प्रयास ‘युद्धस्तर’ पर होता है।  एक फिल्म बनाने पर बहुत पैसा खर्च होता है पर उसके साथ अब कमाई की आकांक्षा बहुत बढ़ गयी है और केवल देश ही नहीं बल्कि विदेशों में उसके लिये दर्शक और प्रायोजक जुटाने का प्रयास किया जाता है।  फिल्मों की विषय वस्तु तथा दृश्य देखकर साफ लगता है कि उसमें विदेशी दर्शकों को लुभाने का प्रयास भी होता है।  देश के दर्शकों के बारे में तो यह मान लिया जाता है कि यहां फालतू लोग बहुत हैं और वह देखने आयेंगे ही। टीवी वीडियो की वजह से एक समय फिल्महाल खाली रहने लगे थे पर अब माल सिस्टम से उनकी वापसी हो रही है।  टिकिट महंगे हैं तो क्या खर्च करने वाले भी इस देश में कम नहीं हैं?
इतना ही नहीं इस देश का एक खास वर्ग चाहता है कि लोग अपनी समस्याओं की चर्चा करने की बजाय फिल्मी रंग में ही डूबे रहें ताकि उनका सम्राज्य बना रहे।  समाचार चैनलों की हालत तो देखने लायक हैं? उस दिन एक वरिष्ठ नागरिक पार्क की तरफ जाते हुए रास्ते में मिले।  उनको मालुम था कि हम समाचार सुनने के शौकीन हैं। बहुत पहले उन्होंने हमें बी.बी.सी. के समाचार रेडियो पर सुनते देखा था।  अनेक बार वह हमसे राजनीतिक विषयों पर भी चर्चा करते थे।  हमें देखकर कहने लगे कि ‘भई, यह बात बताओ कि आजकल तुम कौनसे समाचार देखते सुनते हो? कोई चैनल हो तो बताओ!’
हमने कहा कि ‘आजकल तो सभी चैनल एक जैसे हैं। सभी के पास टाईम पास करने के लिये बहुत सारे साधन हैं सिवाय समाचार प्रस्तुत करने के।’
वह बोले-‘‘क्या बतायें, चार मिनट के भी समाचार नहीं होते। इधर आंखों से कम दिखाई देता है तो अखबार कम पढ़ता हूं पर समाचार के नाम पर वही फिल्म, कामेडी, सास बहु और खेलों का प्रचार ही होता है।  कई बार पोती से कहता हूं कि समाचार चैनल लगाओ। वह लगाती है तो मैं उसको डांटता हूं कि यह कौनसा चैनल लगा दिया तो वह कहती है कि ‘जो समाचार आपने कहा था वही लगाया’। रेडियो पर तो वही है। किसी का जन्म दिन तो किसी का प्रेम प्रसंग, जाने क्या क्या समाचारों में सुनाते हैं।’’
फिल्म के रिलीज होने से पहले विवाद करने के लिये उसके अभिनेता का सक्रिय होना आवश्यक है।  कोई अफलातूनी बयान दे या फिर निजी जिंदगी के किसी ऐसी घटना का प्रचार कराये जिसकी चर्चा पहले नहीं हुई हो।  पहले वाला काम नहीं रहा कि फिल्म बनी और उसके पोस्टर हर शहर में लगा दिये।  कहने का तात्पर्य यह है कि फिल्म निर्माण के दौरान लटके झटके दिखाने के बाद उसके प्रचार के लिये अभिनय भी करना पड़ता हैं।  यह हर अभिनेता का बूता नहीं होता।  ऐसे में जो अभिनेता अभी चार पांच वर्ष तक ऊंचाई पर थे वह अब नीचे आ रहे हैं और उनकी हमउम्र के अभिनेता जो अतिरिक्त सक्रियता दिखाते हैं वह अपनी पहचान बचाने में सफल हैं। इनमें अधिकतर अभिनेता पैंतालीस की आयु पार कर चुके हैं पर उनके यौवन, देह सोष्ठव तथा प्रणय प्रसंगों की चर्चा खुलेआम टीवी चैनलों और रेडियो पर होती है।  इतना ही नहीं अभिनेताओं को टीवी पर अपनी फिल्म के प्रचार के लिये है अनेक कार्यक्रमों में नवयौवनाओं से चर्चा भी करनी पड़ती है। 
अभी एक नयी फिल्म आने वाली है। उसके  अभिनेता ने किसी फिल्म में एक अभिनेत्री को सगाई की अंगूठी पहनाई होगी।  अब उस अभिनेत्री से पूछा जा रहा था कि ‘क्या यही वह अंगूठी है जो उस अभिनेता ने पहनाई थी।’
हां-‘अभिनेत्री ने चहकते हुए कहा। गोया कि कोई वास्तविक सगाई हो। हमें तो यह भ्रम हो गया कि वह अभिनेता शायद दूसरा विवाह करने वाला है। बाद में लगा कि यह तो प्रचार है  पर सच तो यह है कि फिल्म और टीवी वाले एक साथ दो बीवियां रखने का फैशन चलाना चाहते हैं।  फैशन का प्रसंग आया तो जब फिल्मों का दौर बदल रहा था तो यह लगा कि कोई अभिनेता लंबे समय तक राज नहीं कर पायेगा पर दूसरे परिवर्तनों ने ऐसा नहीं होने दिया। अनेक फैशन बदल गये, उनके साथ काम करने वाली अभिनेत्रियों के बच्चे अब पांचवी क्लास में पढ़ते होंगे पर पुराने माडल के अभिनेता अभी चल रहे हैं।  कई बार तो टीवी चैनलों के कार्यक्रमों में लड़कियों के मुख से अंकल शब्द निकल जाता है।
अब जो तेल बेच रहा है वही फोन लगा रहा है और वही सौंदर्य प्रसाधन के सामान भी बना रहा है। उससे कमाकर वह  फिल्म और क्रिकेट में भी विनिवेश करता है।  एक तरह से  व्यवसायिक क्षेत्रों का घालमेल हो गया है।  कहंी न कहीं उनका संबंध टीवी चैनलों और रेडियो से भी होता है।  कहने का तात्पर्य यह है कि ताकतवर लोगों का हर धंधे में दखल हो गया है।  इसलिये वह अपने हर क्षेत्र को एक दूसरे से जोड़कर रखते हैं। ऐसे में क्रिकेट और फिल्म के माडलों के द्वारा अभिनीत विज्ञापनों से उनके उत्पादों को बेचने में सुविधा होती है।  यही कारण है कि वह अभिनेताओं का बचाते हुए चलते हैं।  रहा विवादों का सवाल तो प्रचार माध्यमों में फिल्म और टीवी चैनलों को सहारा देने के लिये उनकी रचना करने वाले क्या कम है? फिर अभिनय केवल अभिनेता ही नहीं करते बल्कि प्रचार माध्यमों में नियमित रूप से दिखने वाला हर चैहरा ऐसा करता दिखता है-ऐसा आम लोग भी मानने लगे हैं।
हम अधिक नहीं जानते, पर अखबार और टीवी चैनलों में खबरों का रुख देखकर उनके परिणाम की कल्पना करते हैं और वह वैसा ही सामने आता है। इसके लिये हम अपने पत्रकार गुरुजी के आभारी हैं जिन्होंने कहा था कि जब कोई समाचार या संपादकीय लिखना हो तो तुम संबंधित प्रसंग के उस पहलू पर भी सोचो जो दिखाया नहीं जा रहा। उसे देखने का प्रयास करो नहीं तो अनुमान से काम चलाओ। 
हमारी दुनियां तो सिमटी हुई है इसलिये कहीं अन्यत्र संपर्क नहीं है सिवाय अपने रोजगार करने और ब्लाग लिखने के।  ऐसे में अखबार और टीवी चैनलों पर जो देखने या सुनने को मिलता है उसके आधार पर पीछे के परिदृश्य की कल्पना करने लगते हैं और वहां  तालमेल वाली कुश्तियां ही दिखाई देती हैं-हो सकता है कि हमारी कल्पना गलत हो।
सबसे ज्यादा बुद्धिजीवियों पर हंसी आती है जो इन मुद्दों को बहुत संवेदनशील बनाने में जुट जाते हैं।  दरअसल कुछ बुद्धिजीवी इस समाज पर संवेदनशील होने का आरोप लगाते हैं क्योंकि उनको जनसमर्थन नहीं मिलता पर सच यह है कि लोग भी अब इन दृश्यों को देखकर और कथनों को पढ़ और सुनकर ऐसा  महसूस करते हैं कि यह सब केवल नोट का खेल है।  अनेक आम लोग तो कह देते हैं कि यह सब नाटकबाजी है।  उनकी यह बातें सब सही निकलती हैं।  अगर सीधी बात कहें कि आप फिल्म नहीं देखते पर आप अगर आप टीवी, रेडियो, इंटरनेट और  समाचार पत्र पत्रिकाओं से नियमित रूप से जुड़े रहने के शौकीन है और फिल्म नहीं देखना चाहते तो आप समझिये कि वह आपको दिखाई जा रही है।  आप अगर किसी चर्चित विषय पर अपने विचार रख रहे हैं तो यकीन करिये कि आप एक फिल्म की चर्चा ही कर रहे हैं।  आपको जो घटनायें स्वाभाविक रूप से घटती दिख रही हैं दरअसल वह एक सीधे प्रसारित होने वाली फिल्म की पटकथा पर आधारित होती है जिसकी तैयारी कहीं न कहीं  की जाती है-यह हमारा सोचना है। बाकी सच क्या है? यह जानना कठिन काम है।
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
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1 comment:

PD said...

मगर उस अभिनेता का नाम आपने नहीं लिखा..

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