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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

3/16/10

आज से भारतीय संवत् 2067 प्रारंभ-विशेष हिन्दी लेख (Today hindu new year-special hindi article)

आज से नववर्ष 2067 प्रारंभ हो गया। प्राचीन काल में जब संचार माध्यम इतने प्रभावी नहीं थे तब इस संवत् को लोग अनेक नामों से पुकारते थे-कम से कम इससे यह तो प्रमाणित तो होता है कि राजनीति से खंड खंड होने के बावजूद सामाजिक रूप से यहां एकता थी। इसके अलावा भारत में वर्ष का निर्धारण करने वाले अनेक अन्य संवत् भी हैं पर यह विक्रमी संवत् सर्वाधिक लोकप्रिय हैं। सिंधी समाज में आज गुड़ी पड़वा भी बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।
दरअसल काल गणना की आज तक कोई तार्किक विधि नहीं बनी है पर फिर भी भारतीय वर्ष सृष्टि के अधिक निकट बैठता है। विश्व में सर्वाधिक प्रचलित ईसवी संवत् एकदम अवैज्ञानिक है-कम से कम भारत में तो यही लगता है। यहां वर्ष को मौसमों के हिसाब से भी तीन भागों में बांटा जाता है-गर्मी, सर्दी और बरसात। ऐसी विधि अन्यत्र देखने को नहीं मिलती।
कुछ पश्चिमी विशेषज्ञ  धर्म के मामले में हिन्दू धर्म और संस्कृति को अधिक प्रासंगिक मानते हैं। इसका कारण यह है कि इसे मानने वाले रूढ़ नहीं होते-अगर उनको कोई  नई चीज या विचार उपयुक्त लगता है उसे मानकर अपना लेते हैं। किसी एक किताब का रट्टा लगाते हुए जिंदगी नहीं बिताते बल्कि नवीन सोच के साथ आगे बढ़ते जाते हैं। इसके विपरीत गैर भारतीय विचारधाराओं वाले केवल अपनी नियत किताबों के आगे किसी को कुछ नहीं समझते और हर नया विचार उनके लिये बुरा या त्याज्य होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो गैर भारतीय विचाराधाराऐं मनुष्य को स्वतंत्र रूप से विचरण करने के विरुद्ध हैं-वह राज्य का परिवार और समाज के अंदरूनी विषयों में हस्तक्षेप चाहती हैं।
सच तो यह है कि गैर भारतीय धार्मिक विचाराधारायें कहीं न कहीं अपने अभ्युदय स्थलों के प्रभाव और प्रशंसा का विस्तार करने की पक्षधर रही हैं और येनकेन प्रकरेण किसी भी तरह धनबल, बाहूबल और समूह बल के आधार पर योजनाबद्ध राजनीतक प्रयास करती हैं। इसके विपरीत सभी भारतीय धर्म केवल मनुष्य में स्व चेतना जाग्रत करने का पक्षधर रहे हैं। उनका मानना है कि आदमी स्वतंत्र रूप से चलता रहे तो समाज में परिवर्तन आयेंगे और उसे किसी शक्ति के साथ रोकना अप्राकृतिक क्रिया है।
एक मजे की बात यह है कि भारत के प्राचीन ग्रंथों को लेकर अनेक गैर भारतीय धर्म मानने वाले ही नहीं बल्कि स्वधर्मी  कथित विचारक  भी हिन्दू धर्म का मजाक उड़ाते हैं-खास तौर से वेद, रामायण और महाभारत को लेकर। पता नहीं उनको यह कैसे भ्रम हो गया है कि वह वेद निर्मित समाज है जबकि गैर भारतीय धर्मी मानने वाले देशी लोग तथा विदेशी संस्कृति के पोषक स्वधर्मी भी वेद, पुराण और उपनिषदों के विरोधाभासों से भरे चंद श्लोकों को लेकर भारतीय धर्म के विरोध में डटे रहते हैं। उनको यह समझाना कठिन है कि वेदकालीन समाज तो कभी का विलुप्त हो चुका है क्योंकि हमारे देश में समाजों के पतन और अभ्यदुय की एक स्वाभाविक प्रक्रिया है जो मानव चेतना से ही चलती है न कि किताबी बातों से। वेदों के बाद भी ढेर सारी रचनायें हुईं हैं जिनसे यह समाज मार्गदर्शन लेता रहा है। सबसे बड़ी बात यह है कि चारों वेदों का सार श्रीमद्भागवत गीता में आ गया है-उसमें वेदों की स्वर्ग से प्रीति रखने वाली बातों को निषेध किया गया है। श्रीमद्भागवत गीता के बाद भी यह समाज केवल उसके साथ चिपका नहंी रहा भले ही उसकी आज भी प्रासंगिकता है क्योंकि समय समय पर पैदा हुए महापुरुष उसी संदेश को दोहराते रहे जो श्रीगीता में हैं। भगवान श्रीगुरुनानक देव, संत कबीर, तुलसीदास और रविदास जैसे महान संतों के सानिध्य में यह समाज आगे बढ़ता गया है। अन्य समाजों से आगे होने का दावा इस आधार पर भी करना गलत नहीं है क्योंकि हिन्दू धर्म के आलोचक वेदों से चिपक कर रह जाते हैं तथा उन्हें संत कबीर वाणी, चाणक्य नीति, विदुर नीति, श्रीगुरुग्रंथ साहिब तथा अन्य महापुरुषों की रचनायें नहीं दिखती जिनका समाज पर वेदों से अधिक गहरा प्रभाव है।
अब यह उनको कौन समझाये कि जिन वेदों, पुराणों और उपनिषदों के विवादास्पद विषयों को लेकर तुम जो ललकार रहे हो उनकी बहुत सी बातों को संपादन करते हुए हटाया जा चुका है-यह काम हमारे देश में जन्में महापुरुष कर चुके हैं-चाहें तो वह श्रीगीता को पढ़कर देख लें। संत कबीरदास जी और श्रीगुरुनानक देव जी ने भारत की जाति पाति और सामाजिक व्यवस्था पर जो करारी चोट की वैसी तो यह आधुनिक आलोचक भी नहंी कर सकते। कहने का तात्पर्य यह है कि अंधविश्वास, रूढ़िवादिता तथा अन्य धार्मिक पाखंडों से दूर रखने के लिये हमारे भारत में ही जन्में महापुरुषों ने ही बहुत प्रयास किये जिस कारण यह हिन्दू समाज आज विश्व का सबसे अधिक वैज्ञानिक, धार्मिक तथा ज्ञनी समाज माना जाता है। बाकी धर्म छोड़े और पकड़े जाते हैं जबकि हिन्दू धर्म केवल माना जाता है और उसे अपनाने के लिये गर्दन घुमाकर स्वीकृति की आवश्यकता  नहीं  होती बल्कि उस पर चलकर दिखाकर प्रमाणित किया जाता है।
इस नववर्ष पर सभी पाठकों, मित्र ब्लाग लेखकों तथा देश के सभी लोगों को बधाई। आने वाले वर्ष में देश और समाज प्रगति करे यही कामना है। इस अवसर पर हमारा तो यही कहना है कि अध्यात्मिक ज्ञान के बिना हम चाहे जहां भी पहुंचे मन में शांति नहीं रह सकती। इतना ही नहीं अगर अध्यात्मिक ज्ञान से व्यक्ति को तीक्ष्ण बुद्धि भी प्राप्त होती है। अतः प्रतिदिन येाग साधना करने के बाद मंत्रोच्चार करने के साथ भगवान का नाम अवश्य लें इससे अनेक लाभ होते हैं और यह करने पर ही पता लगते हैं उनका शाब्दिक वर्णन करना संभव नहीं है।
कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anantraj.blogspot.com
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1 comment:

Udan Tashtari said...

आप को नव विक्रम सम्वत्सर-२०६७ और चैत्र नवरात्रि के शुभ अवसर पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ ..

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