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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

3/15/10

जिंदगी का हिसाब-हिन्दी शायरियां (zindgi ka hisab-hindi shayriyan)

अपने शब्दों से वह
हमारे दिल में कांटे चुभोते रहे,
हमने खामोशी अख्तियार कर ली
यह सोचकर कि समय और हालत
इंसान को बेवफा बना देते हैं।
जब होगी खरीदने की ताकत
हम भी खरीद लेंगे उनको
जैसे लोग वफा खरीद लेते हैं
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प्यार के कितने पैगाम उनको भेजे
पर जवाब कभी नहीं आया।
जो झांककर देखा उनकी जिंदगी में
अपने लिये कोई रिश्ता वहां नहीं पाया।
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अपने घर की तंगहाली
और दिल की बदहाली का
बयान किससे करें
सभी को परेशान हाल देखा है हमने।
तोला जो जिंदगी का हिसाब तराजू में
हमसे अधिक लोगों को घेरा था गम ने।

कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anantraj.blogspot.com
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