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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

6/5/10

ग्वालियर के जियाजी चौक पर विक्टोरिया मार्केट में आग लगना अफसोसजनक-हिन्दी लेख (gwalior, jiwaji chowk and victoriya marcket-hindi article

ग्वालियर के हृदय स्थल जियाजी चौक (बाड़ा) स्थित विक्टोरिया मार्केट का आग में जलना एक तरह से एतिहासिक क्षति है। इस आग के बाद जब विक्टोरिया मार्केट का रूप हमने देखा उससे तो ऐसा लगा कि एक तरह से वह नष्ट प्रायः हो गया है। अब इसका स्वरूप पहले की तरह बहाल होना संभव नहीं है क्योंकि अब इमारतों का निर्माण कार्य पत्थरों से नहीं वरन् इंटों और लोहे से होता है। फिर ऐसा एतिहासिक निर्माण अब संभव भी नहीं है।
विश्व में ग्वालियर का नाम एतिहासिक धरोहरों मानसिंह का किला, जयविलास पैलेस, तानसेन का मकबरा तथा दाताबंदी छोड़ गुरुद्वारे की वजह से जाना जाता है इसके अलावा भी अनेक एतिहासिक और देखने योग्य स्थान ग्वालियर में हैं-जैसे फूलबाग, जियाजी चौक तथा बैजाताल। मजे की बात यह है कि ग्वालियर शहर के स्थानीय लोग प्रसिद्ध एतिहासिक धरोहरों को कम देखने जाते हैं क्योंकि यहां जियाजी चौक तथा फूलबाग ऐसे स्थान हैं जो अत्यंत दर्शनीय तथा रमणीय है कि उससे आगे जाने का उनका मन ही नहीं होता। हालांकि इसका कारण यह भी हो सकता है कि अन्य एतिहासिक स्मारक शहर की भीड़ भाड़ से दूर हैं इसलिये वहां जाना कठिन होता है जबकि फूलबाग और जियाजी चौक मध्य शहर में इसलिये वहां जाना सहज लगता है।
ग्वालियर चार शहरों से मिलकर बना है। यह हैं ग्वालियर, हजीरा, मुरार तथा लश्कर। इनमें लश्कर अब ग्वालियर की पहचान बन गया है क्योंकि इसे सिंधिया घराने ने बसाया था। अगर कहें कि लश्कर और कुछ नहीं केवल जियाजी चौक (बाड़ा) का विस्तार है तो गलत नहीं होगा। इसी शहर में जियाजी चौक (बाड़ा) के-इसे जीवाजी चौक भी कहा जाता है- निकट इस लेखक का जन्म हुआ था और यह कहना कठिन है कि अट्ठाईस वर्ष तक ऐसा कौनसा दिन रहा होगा जब यह वहां से नहीं गुजरा होगा। जियाजी चौक (बाड़ा) पर जाने से हमारा मनोरंजन नहीं होता था बल्कि वहां जाना एक ऐसी आदत बन गयी थी कि न जायें तो लगता  कि आज कुछ छूट गया है। अब जियाजी चौक (बाड़ा) से चार किलोमीटर दूर एक कालोनी में मकान बनाया है इसलिये सप्ताह में एक या दो दिन वहां जरूर जाते हैं। जिस दिन वहां होकर आये मानो पूरा शहर घूम आये।
जियाजी चौक (बाड़ा) के साथ इस लेखक की अनेक यादें हैं। यह एक विशाल चौक है जिसके मध्य में गोलाकार उद्यान हैं। इसी उद्यान के चारों और सड़कें एक काले हार की तरह इसे घेरे रहती हैं। इसके चारों और विशाल इमारतें हैं। पोस्ट आफिस, नगर पालिका का कार्यालय, टाउन हाल, स्टेट बैंक के दो कार्यालय, टोपीबाज़ार और सुभाष मार्केट और विक्टोरिया मार्केट के घेरे में यह जियाजी चौक (बाड़ा) एक आकर्षक स्थान बन जाता है। विक्टोरिया मार्केट एक प्राचीन इमारत थी और उसके नष्ट होने से जियाजी चौक (बाड़ा) की स्थिति ऐसी हो गयी है जैसे कि किसी इंसान का चित्र बिना धड़ का बना हो। इसके ऊपर लगी एतिहासिक घड़ी भले ही चलती नहीं थी पर फिर भी इसके एतिहासिक होने का एक ऐसा प्रमाण पत्र थी जिसे कोई चुनौती नहीं दे सकता था। जियाजी चौक (बाड़ा) से इस लेखक का बहुत लगाव रहा है इसलिये विक्टोरिया मार्केट में लगी आग से बहुत ठेस लगी।
जियाजी चौक (बाड़ा) की चर्चा बहुत कम बाहर सुनने को मिलती है शायद इसका कारण यह है कि ग्वालियर एक मध्यम वर्गीय शहर है जो सदा ही उपेक्षित रहते हैं। यही कारण है कि इंदौर के राजबाड़ा की चर्चा अधिक होती है पर ग्वालियर के जियाजी चौक (बाड़ा) का नाम सुनने में नहीं आता। इस लेखक ने जब इंदौर का राजबाड़ा देखा इस बात पर हैरानी हुई कि जियाजी चौक (बाड़ा) के तुलना में कम दर्शनीय होने के बावजूद वह चर्चित है-संभव है लेखक को यह अपने शहर से प्रेम होने के कारण लगा हो।
यहां सिंधिया वंश के शासन के दौरान बहुत प्रगति हुई थी और यही कारण था कि एक समय यहां कपड़े, चीनी तथा गाड़ी के नौ कारखाने थे जिनको नवरत्न माना जाता था। आजादी के समय ग्वालियर निजाम के हैदराबाद के बाद दूसरा समृद्ध राज्य माना जाता था। यहां जे. सी. मिल्स, सिमको, जे.बी. मंघाराम, चीनी कारखाना और विक्की फैक्ट्री में निर्मित सामान विश्व प्रसिद्ध था। बहुत कम लोग इस बात को जानते होंगे कि विक्की एक ऐसा दुपहिया वाहन था जिसका मिलना भाग्य ही समझा जाता था। इस लेखक को याद है कि एक रिश्तेदार बाहर से यह विक्की लेने ग्वालियर आया था और उसे एक बड़े आदमी की सिफारिश से विक्की मिली थी। जिन लोगों ने विक्की की सवारी की है उनको आज भी कोई दूसरा वाहन पसंद नहीं आता। आर्थिक  उतार चढ़ावों के चलते यहां का आर्थिक साम्राज्य बिखर गया मगर जियाजी चौक (बाड़ा) फिर भी शान से खड़ा रहा। ऐसे में विक्टोरिया मार्केट में लगी आग तकलीफ देह लगती है पर समय बहुत बलवान होता है। यह सच है कि जियाजी चौक (बाड़ा) के आसपास अभी भी बहुत सारा आकर्षण है और रहेगा। बाहर से आने वाले लोगों को इस बात का अहसास नहीं होगा कि विक्टोरिया मार्केट में आग लगने से कोई फर्क पड़ा है। समय के साथ अगर आग की कालिख मिट गयी तो नये लोगों को तो इसका अहसास भी नहीं होगा। अलबत्ता पुराने लोग जिनकी आंखों को जियाजी चौक (बाड़ा) नियमित रूप से देखने की आदत है उनके लिये यह तकलीफदेह होगा कि विक्टोरिया मार्केट एक तरह से खंडहर बनकर रह गया। सख्त अफसोसजनक लगा!
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कवि,लेखक,संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com

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1 comment:

मियां मिट्ठू said...

विक्टोरिया मार्केट में किताबों की बहुत सारी दुकानें हैं, वो भी सब जल गई होंगी। कैसी लग रही होगी वो इतनी शानदार इमारत, अब। मैं तो जब भी ग्वालियर जाता हूं गाड़ी विक्टोरिया मार्केट के सामने खड़ी करके एक चक्कर गोरखी, नज़रबाग, सुभाष मार्केट का ज़रुर लगाता हूं। रीगल में मैंने बहुत फिल्में देखी हैं बचपन में,माधोगंज की चाट अब तक दिल्ली में भी ललचाती रहती है।

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