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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

10/19/10

दौड़-हिन्दी व्यंग्य कवितायें (daud-hindi vyangya kavitaen)

लोगों की हमेशा  बेचैन रहने की 
आदत   ऐसी हो गयी है कि
जरा से सुकून मिलने पर भी
डर जाते हैं,
कहीं कम न हो जाये
दूसरों के मुकाबले
सामान जुटाने की हवस

अभ्यास बना रहे लालच का
इसलिये एक चीज़ मिलने पर
दूसरी के लिये दौड़ जाते हैं।
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पुराने कायदों से आज़ाद होकर
दौड़ने के लिये मन तो बहुत करता है,
मगर बिना अक्ल के चले भी
तो गिरने के अंदेशे बहुत हैं,
ज़मीन पर चलने वालों के लिये खतरा कम है
हवा में उड़कर गिरने का भी डर रहता है।
-------------

लेखक संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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