सड़क पर पहियों के नीचे
कुचली जाती धूल
आँख और मुंह में घुसकर
अपनी ताकत दिखाती है,
कहें दीपक बापू
ऊंची इमारतों के सामने
कैसे अस्तित्व बचाएं
तेज रोशनी से चमकते बल्बों
को कैसे चिढ़ाएं
यही वह सिखाती है।
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विकास सड़क पर
पहियों की सवारी कर रहा है,
जेब खाली है
आदमी उधार के कागज़ भर रहा है।
कहें दीपक बापू
कर्ज़ लेकर पीने के लिए घी
खरीद भी लें
असली होने का भरोसा नहीं
पेट वैसे भी
ज़हरीली गैसों से मर रहा है।
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com
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