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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

9/17/13

जिंदगी सस्ती जीना महंगा-हिन्दी व्यंग्य कविता (zinagi sasti zeena mahanga-hindi vyangya kavita)




जरूरत की चीजें महंगी हो गयी
जिंदगी सस्ती होती जा रही है,
तरक्की का पैमाना है महंगाई
क्या उन्होंने खूब कहीं है,
बैठकर वातानुकूलित कक्षों में
आम इंसानों की रोज की जिंदगी का हिसाब
लिख रहे हैं वह लोग
जिन्होंने कभी तकलीफ नहीं सही है।
कहें दीपक बापू
पढ़ते हैं रोज अखबार,
बेगाना लगता है अपना ही घरबार,
कोई बना रहा है योजना
कोई बेच रहा है सपना
कोई वादे बांट रहा है,
आम इंसानों को बहलाने के
नये नये तरीके छांट रहा है,
हम भी मानते हैं
रोटी का भूख से
पानी का प्यास से
गरीब का दौलत की आस से
कोई रिश्ता नहंी है,
सच यह भी है कि इनके बिना
आदमी जिंदगी की चक्की में पिसता यहीं है,
मुश्किल यह है कि
जीना हो रहा है महंगा
जिंदगी सस्ती हो रही है।

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja "Bharatdeep"
Gwalior Madhya Pradesh
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com 

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