हमारे भारत देश के अध्यात्मिक दर्शन भंडार अनेक महापुरुषों ने
अपने स्वर्णिम संदेश उपहार के रूप में देकर इतना समृद्ध किया है कि विश्व में उसकी
मिसाल अन्य कहीं नहीं मिलती। अध्यात्मिक
पुरुष श्री गुरूनानक देव का नाम पूरे भारतीय जनमानस के हृदय पटल पर स्वर्णिम शब्दों
से अंकित है। हमारे अध्यात्मिक दर्शन के
आधार ग्रंथ मनुष्य के न केवल दैहिक वरन् मानसिक तथा वैचारिक रूप से शक्तिशाली होने
का संदेश देते हैं। एक बात निश्चित है कि
जो मनुष्य अध्यात्मिक रूप से कच्चा है वह सासंरिक विषयों में चाहे जितना सिद्धहस्त
हो जाये आंतरिक रूप से भयग्रस्त ही रहता है।
उसे अपने धन, वैभव, प्रतिष्ठा तथा अन्य
सामानों के छिन जाने का भय रहता है। वह
जिस भौतिक शक्ति को एकत्रित करता है उसके क्षीण या नष्ट होने की आशंकायें उसके
मस्तिष्क में हमेशा रहती हैं। अनेक लोग
स्वयं को परमात्मा की भक्ति इस तरह करते हैं जैसे कि एक औपचारिक दायित्व का
निर्वहन कर रहे हैं। सांसरिक विषयों में
उनका मन इस तरह लिप्त रहता है कि वह भक्ति के समय भी अपना पूरा ध्यान न उसमें लगा
पाते हैं वरन् कहीं न कहीं उनके अंदर सांसरिक विषयों पर विचार का दौर चलता रहता
है। इसी कारण भक्ति से होने वाले वैचारिक
तथा मानसिक लाभ से वंचित रह जाते हैं।
श्री गुरु ग्रंथ
साहिब में कहा गया है कि
------------------
भै महि रचिओ संभ
संसारा।
तिसु भउ नाही
जिसु नामु अधारा।।
भउ न विआपै तेरी
सरणा।
जो तुधु भावै
सोई करुणा।।
सोग हरखा महि
आवण जाणा।
तिनि सुखु पाइआ
जो प्रभ भाणा।
हिन्दी में भावार्थ-इस संसार में सभी के मन
में भय व्याप्त है मगर जिसके मन में परमात्मा के प्रति आस्था है वह निर्भय होकर
विचरता है। जिसने परमात्मा के नाम स्मरण से अध्यात्मिक परिपक्पता प्राप्त की है वह
निर्भयता के साथ आनंद में रहता है। संसार के विषयों उसे अधिक उसे नाम स्मरण में
सुख मिलता है।
एक योग तथा ज्ञान साधक होने के नाते हमारा अनुभव यह रहा है कि परमात्मा के
नाम स्मरण, योग साधना तथा सत्संग से कभी भी सांसरिक विषयों में फलीभूत होने की कामना
करनी ही नहीं चाहिए। इस तरह की क्रियाओं
से हम दैहिक,
मानसिक तथा वैचारिक रूप से शक्तिशाली हो सकते हैं
जिससे सांसरिक विषयों में भी सहजता से बने रह सकते हैं।
अनेक लोग यह पूछते हैं कि परमात्मा के नाम स्मरण से क्या लाभ होता है? इसका जवाब केवल यही है कि कोई प्रत्यक्ष लाभ नहीं होता और जो अप्रत्यक्ष
रूप से मिलता है उसका मूल्य किसी भी मुद्रा में आंका नहीं जा सकता। हम यह भी देख रहे हैं कि अंग्रेजी शिक्षा
पद्धति के प्रभाव में हमारा वर्तमान समाज भारतीय देवी देवताओं के नाम स्मरण को एक
पुराना विचार मानते हैं। इतना ही नहीं
समाज के अनेक लोगों यह भ्रम भी पालते हैं कि भगवान के नाम जपने से संसार के विषयों
में भारी उपलब्धि मिल जाती है। भक्ति से
मानसिक लाभ होने की कोई कल्पना तक नहीं करता।
जबकि हमारे अध्यात्मिक दर्शन के अनुसार मनुष्य के संकल्प के अनुसार ही उस
निजी संसार निर्मित होता है।
इसलिये हमें अपनी भक्ति निष्काम भाव से ही करना चाहिये। सृष्टि की रचना
परमात्मा का कार्य है पर संसार का खेल तो माया रचती है। परमात्मा के नाम स्मरण से हम कुछ देर के लिये
संसार चक्र से हम दूर हो जाते हैं और इस दौरान मिले विराम से मन को राहत मिलती
है। वह मन जो अंततः हमारा स्वामी होने के
कारण सांसरिक विषयों में हमें भगाता रहता है।
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja "Bharatdeep"
Gwalior Madhya Pradesh
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
No comments:
Post a Comment