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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

12/31/14

नववर्ष और नव संवत्-हिन्दी कविता(nava varsh-nav sanvat-hindi poem)




शराब पीते नहीं
मांस खाना आया नहीं
वह अंग्रेजी नये वर्ष का
स्वागत कहां कर पाते हैं।

भारतीय नव संवत् के
आगमन पर पकवान खाकर
प्रसन्न मन होता है
मजेदार मौसम का
आनंद भी उठाते हैं।

कहें दीपक बापू विकास के मद में,
पैसे के बड़े कद में,
ताकत के ऊंचे पद मे
जिनकी आंखें मायावी प्रवाह से
 बहक जाती हैं,
सुबह उगता सूरज
देखते से होते वंचित
रात के अंधेरे को खाती
कृत्रिम रौशनी उनको बहुत भाती है,
प्राचीन पर्वों से
जिनका मन अभी भरा नहीं है,
मस्तिष्क में स्वदेशी का
सपना अभी मरा नहीं है,
अंग्रेजी के नशे से
वही बचकर खड़े रह पाते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja "Bharatdeep"
Gwalior Madhya Pradesh

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com 

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