हमारे देश में शारीरिक दृष्टि से स्वस्थ रहने के लिये बहुत कम लोग किसी खेल
में सक्रिय होते हैं। अधिकतर लोग दर्शक के
रूप में खेल के मुकाबले देखकर मनोरंजन के
भाव से आनंद उठाना चाहते हैं। आज के व्यवसायिक युग में कुशल प्रबंधकों ने इसका लाभ
उठाते हुए खेलों को मनोरंजन का साधन बना दिया है। इतना ही नहीं मनुष्य मन में
अनिश्चता के प्रति जिज्ञासा के भाव का लाभ उठाने के लिये जिस तरह सट्टेाबाज पहले अंकों के खेल का आयोजन
करते थे अब खेलों में भी अब उनकी सक्रियता हो गयी है। टेनिस,
क्रिकेट, फुटबाल तथा अन्य खेलों में सट्टे के प्रभाव के अनेक समाचार आते रहते हैं।
हमारे देश में क्रिकेट कभी लोगों में बहुत लोकप्रिय था पर जैसे उसमें भ्रष्टाचार
के समाचार आने लगे वैसे वैसे विरक्ति भी बढ़ने लगी। हालांकि वह पूरी तरह खत्म नहीं
हुई है।
क्रिकेट का खेल दो प्रकार है-एक तो वह जो गली मोहल्लों, कालोनियों और गांवों
में बच्चे खेलते हैं, दूसरा वह है जो बड़े मैदानों पर बड़े बड़े खिलाड़ी खेलते हैं। जब सामान्य
बच्चों को खेलते देखते हैं कि वाकई क्रिकेट एक खेल है पर जब बड़े खिलाड़ियों को
देखते हैं तो लगता है जैसे कि कोई फिल्म देख रहे हैं। उस पर गाहे बगाहे इन्हीं खिलाड़ियों पर बाहरी
इशारों के आधार गेंद फैंकने, बल्ला घुमाने और पहले से तय निर्णय के अनुसार ही मैच समाप्त करने के आरोप
लगते हैं तो लगता है कि यह वाकई मनोरंजन है। इसलिये किसी की हार पर शोक और जीत पर
जश्न मनाने की बजाय उसे भूल जाना चाहिये। मगर यह प्रचार माध्यम वह भी नहीं करने
देते। गाहे बगाहे खेल के साथ कई बार मैदान से बाहर की खबरें भी चापने लगते हैं। उस समय हम यह सोचते हैं कि हम क्रिकेट के बारे
में सोचें या खबर में शािमल अन्य विषय पर ध्यान लगायें। जब कहीं क्रिकेट मैच नहीं होता और होता है तो
उसे प्रचार नहीं मिलता तब प्रचार माध्यम क्रिकेट नाम से जुड़ी पर विषय से इतर खबर
निकाल भी इस खेल को जनमानस में जिंदा रखने का प्रयास करते हैं। वह किसी तरह
क्रिकेट समाचार चाप कर अपने विज्ञापन का समय खूब पास करते हैं।
सच बात तो यह है कि क्रिकेट अब खेल नहीं रहा एक तरह से लोग इसे फिल्म और
टीवी धारावाहिक की तरह देखने लगे हैं।
हमारा मानना है कि क्रिकेट जैसे मैदान (outdoor sports) की बजाय शतंरज, कैरम तथा अन्य ऐसे
खेलों से जुड़ना चाहिये जो कमरे या छोटी जगह पर खेले जा सकें। मैदानी खेलों में एक उम्र के बाद शामिल रहना
असहजता लाता है जबकि कमरे(indor sports) या छोटी जगह पर सभी उम्र के लोग खेल सकते हैं। अब क्रिकेट खेलना या देखना स्वास्थ्य के लिये
हानिकारक लगता है। इसमें व्यर्थ का तनाव तो पैदा होता ही है अनेक जगह सट्टेबाजी की
वजह से परिवार बरबाद होने के समाचार भी आते हैं। इसलिये मन को बहलाने के लिये आंतरिक
खेलों में रुचि रखना चाहिये।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja "Bharatdeep"
Gwalior Madhya Pradesh
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com
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यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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