हम लोग कई जगह चलते और बैठते समय अपने आसपास चींटियां तथा चैंटे घूमते
देखते हैं। अनेक लोग अपने पांव तले रौंदने से बचाने के लिये अपनी दैहिक स्थिति बदल
देते हैं तो कुछ लोग जबरन इन पर पांव रखकर इन्हें मार डालते हैं। एक तीसरी स्थिति भी होती है कि हम चलते हुए
इनको अनजाने में मार डालते हैं, पर यह चर्चा का विषय नहीं है। चर्चा का विषय यह है कि जो लोग शक्ति होते
हुए भी चींटी नहीं मारते वह वास्तव में ज्ञानी है और जो जानबूझकर मारते हैं वह
अज्ञानी है। इंसान के अंदर अन्य जीवों की अपेक्षा विवेक के कारण अधिक शक्ति होती
है यह ज्ञानी जानते हैं पर अज्ञानी उसका दुरुपयोग कर स्वयं के सामने यह प्रमाणित
करते हैं कि वह शक्तिशाली है। यही स्थिति उन अधिक धनी, उच्च पद और बाहूबलियों
की होती है जा ेअपनी शक्ति को लेकर वह भ्रम मेें रहते हैं कि वह है भी कि
नहीं। यह भ्रम उन्हें प्रयोग के लिये
प्रेरित करता है और वह कमजोर पर अपनी शक्ति का प्रयोग कर उसे प्रताड़ित कर मनोरंजन
करते हैं ऐसे शक्तिशाली ज्ञान की दृष्टि
से अधिक कमजोर होते हैं और अंततः अपने पास आने के लिये संकट को निमंत्रण देते हैं।
कहा जाता है कि थोथा चना बाजे घना,
जिसका आशय यही है कि जिसमें कम शक्ति या बुद्धि होती
है वह उसके अधिक होने का प्रदर्शन के लिये निरर्थक प्रयास करता है। अनेक बार ऐसे
लोग हास्यास्पद हरकतें करते हैं। मुश्किल
तब होती है पद, पैसे और प्रतिष्ठा के शिखर पर बैठे लोग अध्यात्मिक ज्ञान के अभाव में अपनी
शक्ति का प्रदर्शन केवल इसलिये करते हैं ताकि समाज में जो उनके लिये भय या सम्मान
है तो वह उन्हें स्वयं को दिखे। आज स्थिति
यह है कि समाज, अर्थ, कला और तथा धर्म के शिखर पर बौने चरित्र के लोग जब पहुंचत हैं तो वह खतरनाक
भी हो जाते हैं। यही कारण है कि हम आजकल
अपराधों में छोटे की बजाय बड़े वर्ग के लोग लिप्त पाय जा रहे हैं। बहरहाल जिन लोगों के पास धन, पद और प्रतिष्ठा के
शिखर पर विराजमान हो जायें उन्हें अपनी अध्यात्मिक आंखें खुली रखना चाहिये।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja "Bharatdeep"
Gwalior Madhya Pradesh
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com
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