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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

7/14/15

बाहुबली फिल्म की सफलता से निकले संदेश-हिन्दी चिंत्तन लेख(bahubali film ki safalata se nikle sandesh-hindi thought article)

        बाहुबली फिल्म ने भारतीय मनोरंजन जगत में तहलका मचा दिया है। दक्षिण की हिन्दी भाषा में अनुवादित वाणी से सुसज्जित फिल्म बाहुबली ने जो व्यापार किया है उससे मुंबईया फिल्मों की असलियत सामने आ गयी है। दरअसल दक्षिण भारतीय फिल्म उद्योग शुद्ध रूप से सार्वजनिक व्यवसायिक सिद्धांतों पर आधारित है जबकि मुंबईया फिल्म वाले उसे पारिवारिक दुकान की तरह चलाते हैं। आप नज़र डालिये तो पायेंगे कि  वर्तमान के अधिकतर फिल्म अभिनेता अभिनेत्रियां अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि के होने के काम पा जाते हैं। सामान्य परिवार के युवक और युवतियेां के लिये इस क्षेत्र में अवसर एकदम बंद कर दिये गये हैं। अनेक अभिनेता तो पचास पार करने के बाद भी नवयौवनाओं के साथ नायकों का अभिनय कर रहे हैं। ऐसे में सवाल आता है कि क्या देश में आकर्षक और प्रतिभाशाली युवकों की क्या कमी है? मगर मुंबईया फिल्म व्यवसाय रूढ़िवादी हो गया है।  अनेक अभिनरेता तो केवल चेहरे की सज्जा के कारण नायक बनते है वरना अधिकतर की आंखें सपाट हैं। इनके अभिनय में स्वाभाविकता का अभाव दिखता है। इसके विपरीत दक्षिण भारतीय अभिनेता और अभिनेत्रियों स्वभाविकता के साथ अपना काम करते हैं। उनमें आकर्षण भी अधिक होता है।
                              जिन लोगों ने टीवी पर दक्षिण भारतीय अतिभनेता और अभिनेता का काम देखा है वह हिन्दी भार्षी दर्शक इस बात को अब समझते हैं कि मुंबईया फिल्म व्यवसाय अब अपने बुढ़ापे को ढो रहा हैै। बाहुबली फिल्म देखकर आने वाले लोगो का कहना है कि अगर इसी तरह दक्षिणी फिल्मों का हिन्दी में तत्काल प्रसारण होता रहा तो  मुंबईया फिल्म के लिये भारी संकट खड़ा हो सकता है। यह सभी जानते हैं कि मुंबईया फिल्म उद्योग के पीछे की शक्तियां येनकेन प्रकरेण उसके संकटों का निवारण करने के लिये प्रयास करती है। हमने कहीं पढ़ा  था कि  एक समय अंग्रेजी फिल्मों के हिन्दी अनुवाद के प्रसारण दौर शुरु हुआ और उस समय जब मुंबईया फिल्म उद्योग के लिये संकट खड़ा होता दिखा तो उसे रोकने के  प्रयास हुए। कुछ समय बाद वह दौर थमा तो नहीं पर कम जरूर हो गया। बहरहाल बाहुबली फिल्म की सफलता के बहुत सारे अर्थ निकाले जा रहे हैं पर हमारा मानना है कि फिल्मों के प्रभाव क्षणिक ही होते हैं। ऐसी फिल्मों की निरंतरता ही बुढ़ा चुके मुंबईया फिल्म उद्योग को व्यवसायिक चुनौती दे सकती है।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja "Bharatdeep"
Gwalior Madhya Pradesh

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com 
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