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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

7/26/15

प्रचार माध्यमों की व्यंजना शैली में धार्मिक उन्माद का भाव रहता है-हिन्दी चिंत्तन लेख(prachan madhyamon ke vyanjana shaili mein dharmik unmad ka bhav-hindi thought article)

                              आज एक अभिनेता ने एक कैदी को फांसी की सजा दिये जाने का ट्विटर पर विरोध किया है। हमें पता नहीं कि उस अभिनेता ने ऐसा क्या अनुभव किया कि ऐसी बात लिख दी जो उनके ही प्रशंसकों को धार्मिक दृष्टि से नाराज कर सकती है हालांकि इसके लिये उसे जिम्मेदारी नहीं माना जा सकता वरन् प्रचार माध्यम सांकेतिक रूप से इसमें धर्म तत्व का तड़का लगाने का प्रयास कर रहे हैं। मूलत न्यायालय और प्रशासनिक मसलों पर जिस तिरह प्रचार माध्यम व्यंजना शैली में सांप्रदायिकता उन्माद फैलाने वाले धार्मिक विषय जोड़ रहे हैं वह अत्यंत चिंताजनक है।
  कभी कभी तो यह लगता है कि हमारे प्रचार व्यवसायियों को देश में स्थाई शांति पसंद नहीं है। शायद उनको लगता है कि जिस तरह बिना झगड़े फसाद वाली फिल्में ज्यादा दर्शक नहीं जुटा पाती, उसी तरह जब तक देश में हिंसक या तनाव वाली वारदातें न हों तब तक उनके समाचार और बहसों के लिये दर्शक नहीं मिल पायेंगे। यही कारण है कि वह देश में साम्प्रदायिक तनाव फैलाने के इस तरह प्रयास करते लगते हैं जैसे कि देश की एकता की रक्षा और अखंडता के लिये बहुत चिंतित हों।  यह अलग बात है कि चिंतित केवल वह अपने विज्ञापनों का समय पास करने के लिये ही होते हैं।
                              सबसे बड़ी समस्या न्यायालयीन और प्रशासनिक के क्षेत्राधिकार वाले  मसलों पर सार्वजनिक बहस इस तरह करते हैं जैसे कि वहा कोई मुकदमा चला रहे हों।  अपने यहां वह प्रायोजित विद्वान बुलाते हैं इसलिये कोई उनसे कहता नहीं पर अंतर्जाल पर इन संगठित माध्यमों के लिये मित्रतापूर्ण भाव नहीं दिखता।  इनके समाचारों की स्थिति यह है कि दोपहर को अगर क्रिकेट, राजनीति और फिल्म से जुड़ी सनसनी खबर आ जाये तो फिर यह समझते देर नही लगती कि रात तक वही चलेगी। यही कारण है कि आजकल हम रात को टीवी समाचार छोड़कर अंतर्जाल पर पाठ लिखने लगते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja "Bharatdeep"
Gwalior Madhya Pradesh

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com 
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