हमारे देश में समाज सुधारने के लिये अनेक स्वयंसेवी संगठन बन गये हैं। इनके
अनेक संगठनों के पदाधिकारी चंदा लेकर अपना घर भर रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह कि जिस
विषय में ज्ञान नहीं है उसमें ही विशेषज्ञ होने का प्रचा करते हैं। हमने तय किया कि समाज सुधारने पर चिंत्तन कर
कोई ऐसा उपाय किया जाये जिससे वास्तव में यहां आदर्श लोगों का समूह बन सके।
जो लोग चाहते हैं कि उनके परिवार के सदस्य साहसी बने वह उन्हें फिल्में
देखने से बचायें। फिल्में हर फिल्म में सारी समस्याओं हल एक काल्पनिक नायक से हल
होती दिखाते हैं।
जो लोग चाहते हैं कि उनके परिवार के सदस्य घरेलू तथा बाह्य खेलों में हृदय
से रुचि लें वह उन्हें क्रिकेट खेलने से बचायें। क्रिकेट खाये पीये अघाये लोगों का
खेल है जो मनुष्य को सुस्त और संकीर्ण विचार वाला बनाता है। सबसे बड़ी बात तो यह कि परिवार के सदस्यों के
सट्टे की आदत में फंसने की संभावना रहती
है।
जो लोग चाहते हैं कि उनके परिवार के सदस्य सामान्य रूप से कुशाग्र
बुद्धिमान, परिश्रमी तथा ईमानदार बनायें वह उन्हें टीवी के सामाजिक धारावाहिक देखने से
बचायें। टीवी धारावाहिकों जो अतिनाटकीयता देखने को मिलती है वह आमतौर से परिवारों
में नहीं होती। अगर कोई अधिक देखेगा तो वह
परिवार के सदस्यों पर ही हर बात पर शंका करेगा। उसे लगेगा कि उसके अलावा अन्य सभी
सदस्य उसके शत्रु हैं। दूसरी बात यह कि इन
धारावाहिकों में घर का कामकाज नौकरों के भरोसे होते दिखता है इससे परिवार के
सदस्यों को यह गलत फहमी हो सकती है कि घरेलू काम करना तो उनके धर्म ही नहीं है।
नोट-कामेडी धारावाहिक देखने से रोकने का प्रयास न करें हालांकि इससे उनके
ऐसे व्यंग्यकार बन जाने की शंका रहेगी जो किसी पर भी फब्तियां कसने से बाज नहीं
आता। कोई और न मिले तो स्वयं पर ही
फब्तियां कसता है।
वैधानिक चेतावनी-यह सुझाव अनुमान के आधार पर दिये जा रहे हैं। इनका कहीं परीक्षण नहीं किया गया है। इनका अनुसरण किसी मनोवैज्ञानिक से पूछकर करें वरना किसी घटना के लिये स्वयं ही जिम्मेदार होंगे।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja "Bharatdeep"
Gwalior Madhya Pradesh
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com
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यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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