आस्था की आजादी के नाम पाखंड के विरोधी से बचने की छूट नहीं दी जा सकती।
भारत के हर नागरिक के पास अंधविश्वास का विरोध करने का नैसर्गिक अधिकार है। आज के
युग में धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर नये विचारों का सृजन रोका नहीं जा सकता।
यह देखा जा रहा है कि धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर पाखंड या अंधविश्वास का
विरोध करने वालों को प्रताड़ित किया जा रहा है। खासतौर से भारत के बाहर पैदा हुई
विचाराधाराओं के मानने वाले नहीं चाहते कि भारत में उनके अंधविश्वास या पाखंड की
चर्चा हो इसलिये धर्मनिरपेक्षता के नाम पर गाहेबगाहे अपनी आलोचना पर विवाद खड़ा
करते हैं। नाटक, कवितायें, लेख और फिल्मों में अगर विदेशी विचाराधाराओं के प्रतिकूल होता है तो वह
अधिक चिल्लाते हैं-हालांकि भारतीय विचारधारा मानने वाले भी ऐसा चाहते हैं पर यहां
अध्यात्मिक ज्ञान का प्रभाव अधिक होने के कारण उन्हें अधिक जनसमर्थन नहीं मिल
पाता। दरअसल कहा जरूर जाता है कि भारतीय
अध्यात्मिक विचाराधारा मानने वाले असहिष्णु हैं पर जिन लोगों ने भारतीय ज्ञान को
आत्मसात किया है वह जानते हैं कि जितना भारतीय विचाराधारायें मानने वाले उतना कोई
अन्य सहिष्णु नहीं है।
पहले भारत की स्वदेशी विचारधाराओं की बात कर लें। धर्म के नाम पर कर्मकांडों का पाखंड और
अंधविश्वास का विरोध हमारे देश में हमेशा होता रहा है। हमारे यहां भगवान गुरुनानक, संतप्रवर कबीरदास, कविवर रहीम तथा अन्य
अनेक महापुरुषों ने जमकर भारतीय अध्यात्मिक विचारधारा के नाम पर अंधविश्वास और
पाखंड का विरोध किया। समाज ने उन्हें भी सम्मान दिया। अनेक संतों ने तो कर्मकांडों का विरोध करते हुए
समानांतर पंथ भी चलाये पर आज भी उनका नाम सम्मान दिया जाता है। इससे बड़ी बात क्या हो सकती है कि हिन्दू धर्म
की रक्षा के लिये सिख पंथ का प्रादुभाव हुआ जिसे सहर्ष मान्यता दी गयी। आज भी अनेक लोग भारतीय विचाराधारा की मान्यता
वाले होने के बावजूद खुलकर अंधविश्वासों का विरोध करते हुए घबड़ाते नहीं है। इतना
ही नहीं अनेक बा भारतीय देवी देवताओं पर व्यंग्य करने वाली रचनाओं की भी यह सोचकर
उपेक्षा कर देते हैें कि इससे उत्तेजित होने से कोई लाभ नहीं है।
इसके विपरीत विदेशी विचाराधारा मानने वालों तो अपने अंधविश्वास और पाखंड का
विरोध या मजाक उड़ाने वाली किताबों, नाटकों और कार्यक्रमों का विरोध कर उनपर प्रतिबंध लगवाते हैं। यह उनकी
सहिष्णुता के साथ ही अध्यात्मिक रूप से कमजोर होने का प्रमाण हैं। दरअसल विदेशी
विचाराधारा के ठेकेदारों में यह भाव है कि वह यहां लोगों को बहला फुसला और लालच
देकर अपने समाज का विस्तार करें ताकि उनके विदेशी आकाओं का यहां भी प्रभुत्व बना
रहे। हमारा यह भी मानना है कि विदेशी विचारधारायें यहां एक राजनीतिक लक्ष्य लेकर
ही प्रवाहित की गयी हैं।
हमें उनके प्रतिबंध लगवाने के प्रयासों पर आपत्ति नहीं होती अगर हमारे देश
के लोगों के पास पाखंड या अंधविश्वास का विरोध करने का नैसर्गिक अधिकार नहीं होता।
जब हमारे देश के लोग भारतीय विचाराधारा के नाम पर फैले पाखंड और अंधविश्वास के
विरोधियों को स्वीकारते है तो विदेशी विचाराधारा मानने वालों को इसमें आपत्ति
क्यों होती है? वह अपने पवित्र ग्रंथों और उसके विचारों का यहां प्रचार करेंगे तो हर
भारतीय का अधिकार है कि वह उनमें दिख रहे अंधविश्वास और पाखंड का विरोध करे। आस्था की स्वतंत्रता सभी को होना चाहिये यह हम
मानते हैं कि पर इससे पाखंड या अंधविश्वास के विरोध से बचने की छूट नहीं दी जा
सकती। इस संबंध में हमारा मानना है कि धार्मिक
विवादों पर किसी के विरुद्ध भी कार्यवाही होने पर पहले उसका न्यायालयीन परीक्षण
होने फिर किसी के विद्धरु प्रतिवेदन मान्य किया जाना चाहिये।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja "Bharatdeep"
Gwalior Madhya Pradesh
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com
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