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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

3/13/16

हिन्दी मुहावरे पर लिखी गयी क्षणिकायें (HindiMuhavare And Hindi ShortPoem

लोगों के पास
कभी आते नहीं
चेहरे उनके लुभावने हैं।
अपनी इस सच्चाई से
परिचित है कि वह
ज़माने के लिये
‘दूर के ढोल सुहावने हैं।’
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रुपहले पर्दे पर
बहस सज रहीं
बजता विज्ञापनों का राग।
बात खेत की
सुनायें खलिहान की
आकाओं के गुलाम बजाते
‘अपनी ढपली अपना राग।’
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महंगाई के दौर में
फुर्सत नहीं कि जाने
किसका दिल साफ
किसका काला है।
हम तो यही समझे
मुफ्त में वफा का वादा करे
लगता ‘दाला में कुछ काला है।’
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja "Bharatdeep"
Gwalior Madhya Pradesh

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com 
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