राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संचालक श्रीभागवत ने समूचे कश्मीर में हिन्दूओं की वापसी की बात कहकर अच्छा काम किया है। जम्मू कश्मीर के धार्मिक आधार पर भारत से प्रथक करने वालों के आंदोलन को समर्थन देकर पाकिस्तान समूचे कश्मीर में खराब हालात की चर्चा करता है। पहली बार राष्ट्रीय स्वयं सेवक के संचालक श्रीमोहन भागवत ने भारत से संरक्षित ही नहीं वरन् पाक अधिकृत कश्मीर व गिलगित में हिन्दू पंडितों की वापसी का लक्ष्य प्रकट कर यह साबित किया है कि हम भी अब इसे धार्मिक आधार पर देखने को तैयार हैं। हमारी राय है कि हिन्दूओं की कश्मीर में वापसी का मुद्दा अब पाकिस्तानी दुष्प्रचार को खंडित करने के लिये उठाया ही जाना चाहिये। अभी तक धर्मनिरपेक्षत सिद्धांतों की दुहाई देने वाले कभी यह बात नहीं कह सके कि गिलगित बालटिक वह पाक अधिकृत कश्मीर में जब तक हिन्दूओं की वापसी नहीं होगी तब वहां संयुक्तराष्ट्रसंध के प्रस्ताव के अनुसार जनमत संग्रह नहीं हो पायेगा।
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अभी यह पता नहीं कि राष्ट्रवादी विचारक संघप्रमुख की इस बात को आगे कहां तक ले जाये पायेंगे। अलबत्ता धर्मनिरेपक्ष, उलटपंथी तथा हिन्दू विरोधी विचारक इस विचार पर बवाल जरूर मचायेंगे। जम्मू कश्मीर की वर्तमान मुख्यमंत्री को भी यह बात साफ करना चाहिये कि हिन्दूओं की वापसी को मुख्य मुद्दा माने। दरअसल कश्मीर की स्थिति यह है कि वहां शिया मत वाले ज्यादा हैं जो अप्रत्यक्ष रूप से ईरान से संचालित हैं जबकि चरमपंथी सऊदी अरब के पिट्ठू हैं। दोनों में सीधे संघर्ष है पर भारत में हिन्दू बाहुल्य राज्य प्रबंध के विरुद्ध दोनों एक ही हैं-क्योंकि ईरान तथा सऊदी अरब भले ही तात्कालिक स्वार्थ या भय से भारत के मित्र दिखते हों पर किसी भी हालत में कश्मीर की स्थिरता बनाये रखने में सहायक नहीं होंगे। दोनों में फूट पैदाकर समस्या का हल करने की सोचना भी मूर्खता हैं। वहां हिन्दू तत्व ही विजय दिलाने में सहायक होगा पर इसके लिये जो वैचारिक दृढ़ता चाहिये उसके लिये राष्ट्रवादियों को पूरे देश में राज्यप्रबंध सुधार कर अपना कौशल दिखाना होगा।
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जिस तरह उरी के बदले को लेकर देश के कथित परंपरागत निरपेक्ष बुद्धिमान राष्ट्रवादियों के सत्ता में स्थाई अस्तित्व बन जाने की संभावना से चिंतित हैं उससे साफ लगता है कि उनके प्रायोजन में कहीं न कहीं विदेशी आर्थिक शक्तियों का ही हाथ रहा है।
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