मत पूछना हमारा पता-हिन्दी कविता
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अपने कंधों पर
स्वार्थों की अर्थी
ढोना आसान नहीं होता।
जब तक चलती सांस
दौलत से रिश्ता तोड़ना
आसान नहीं होता।
कहें दीपकबापू सब मित्रों से
मत पूछना कभी हमारा पता
अपनी लतों के
पीछे भागती भीड़ से
गुम होना आसान नहीं होता।
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अमीरों की यह खुशफहमी है कि उनकी दुनियां ही में गरीब भी रहते हैं।
पैसे की जंजीर में बंधे अक्लमंद नहीं समझाते इसे नसीब भी कहते हैं।
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इंसानों में स्वार्थ मे बनते संबंध, बुद्धिमान भावना के नहीं बांधे बंध।
‘दीपकबापू’ जिंदगी का सच न जाने, इश्क के दरिया में बहें जो अंध।।
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बुद्धि के द्वार बंद जिनके वही समाज के महानायक बन जाते हैं।
अपनी सोच जो भूलते चतुर व्यापारियों के गायक बन जाते हैं।
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धरती के पुत्र सभी कहलायें फिर भी टुकड़ों के सौदे किये जाते हैं।
फसल लहराते किसान अपना खेत धनपतियों के नाम किये जाते हैं।
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हर दिन हर पल जिंदगी रंग बदले यह समझता कौन है।
राह चलने के लिये है जहां रुके वहां जिंदगी का मौन है।
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हम उसे अब कहां ढूंढें, अपना पता दिये बिना वह चला गया।
क्या आस करें, दिल में हमारे नाम की तख्ती भी जला गया।।
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किताबों के शब्द जिंदगी की चाल नहीं तय नहीं करते।
स्वच्छंद पक्षी देखो हवाओं की चाल से भय नहीं भरते।
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