बगदादी नाम का कोई व्यक्ति इस धरती पर पैदा ही नहीं हुआ जो मरेगा। वह बिना पैदा हुए ही अमर हो गया है। दरअसल पूरे विश्व के प्रचार माध्यम अंततः माफिया और पूंजीपतियों के सहारे चलते हैं। खासतौर से विश्व की हथियार बनाने वाली कंपनियां कहंी न कहीं विश्व मेें आतंकवाद के कारण बहुत फायदे में रहती हैं। मध्य एशिया में राष्ट्र तो नाम के हैं वरना तो वहां भी कबीलों के सरदारों का अब भी वर्चस्व है। यह सरदार पैसे, पद और प्रतिष्ठा के भूखे हैं-इस कदर कि हिंसा या अहिंसा का उनके लिये कोई अर्थ नहीं है। सऊदी अरब तथा तुर्की ने मिलकर इन सरदारों को आतंकवाद का ठेका दिया और बगदादी नाम का एक कल्पित शासक गढ़ दिया-जिसके नाम के पीछे यह सब छिपे रहें। फिर उनके खरीदे बुद्धिजीवी पटकथा लिखकर उसे चलाते रहे। कहीं से एक फोटो उठाकर अंतर्जाल पर टांग दिया और कहा यही है बगदादी।
पांच बार उसे मार चुके। इराक की सेना एक बार दावा करती है कि हमने उसे मारा तो अमेरिका का खंडन आता है। दूसरी बार तुर्की का खंडन आता है। अब मोसुल में उसे घिरा बताया गया और हम सोच रहे थे कि उसके पटकथाकारों से कहें कि ‘यार, उसे अब वहां से निकालो, वरना तुम्हारा सारा खेल खत्म हो जायेगा।’
इससे पहले कि हम यह बात फेसबुक पर लिखने का समय निकाल पाते तब तक ब्रिटेन के विदेशमंत्री का बयान आया कि-‘बगदारी मोसुल से निकल गया है।’
हमें बरबस हंसी आ ही गयी। इससे पहले मजेदार खबरे आ रही थीं
‘बगदादी बुरी तरह घायल है और बिना किसी के सहारे के चल नहीं सकता।’
‘बगदादी मोसुल में बनी सुंरगों में इधर उसे उधर भाग रहा है।’
‘मोसुल में इराकी सेना ने उस जगह को घेर लिया है जहां बगदादी छिपा है।’
बगदादी अगर इस धरती पर होता तो ही मौसुल में मिलता। बगदादी की वजह से न केवल कंपनियों के हथियार बिक रहे हैं वरन पूंजीपतियों के टीवी चैनल उसके समाचारों तथा फिर बहसों से अपने विज्ञापनों का समय पास करते हैं। हमारी दृष्टि से बगदादी नाम का कोई व्यक्ति हुआ ही नहीं जो घायल हो जाये या मरकर अमर हो। इतना ही नहीं अरब देशों में चल रहा संघर्ष अभी थमने वाला नहीं है क्योंकि वहां पेट्रोल है तो पश्चिमी देशों के पास हथियारों का जखीरा। बगदादी एक ऐसा कल्पित खलनायक हैं जिसका कोई ढूंढ ही नहीं सकता। उसकी पटकथा लिखने वाले बहुत हैं। एक मारेगा तो दूसरा जिंदा कर लेगा। एक भगायेगा तो दूसरा नचायेगा। हमारे यहां आचार्य चतुरसन का एक लिखा उपन्यास प्रसिद्ध है ’चंद्रकांता संतति’-जिसे हमने पढ़ा नहीं है-पर कहा जाता है कि उसके पात्र भी कुछ इसी तरह के हैं।
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