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5/9/18

चंद हादसों से रास्ते बदनाम नहीं होते-दीपकबापूवाणी (Chand Hadson se raste Badnam nahin hote-DeepakBapuWani)

रुपहले पर्दे पर एक बार चेहरा दिखा, प्रसिद्ध जनसेवक फिर जमीन पर कहां टिका।
‘दीपकबापू’ मान अपमान का मोल लगाते, पूछें किसका ख्याल कितने में कहां बिका।।
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वानर जैसी पेड़ों पर नित उछलकूद करते हैं, व्यस्त होने का स्वांग रचते हैं।
‘दीपकबापू’ अपन बाजूओं पर भरोसा करें, मददगारों की चाहत से डरते हैं।।
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चंद हादसों से रास्ते  बदनाम नहीं होते, लालच की मस्ती में दूसरे काम नहीं होते।
‘दीपकबापू’ जनसेवकों में ढूंढते न भला, करें न वह सेवा जिसके दाम नहीं होते।।
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अपने लायक सभी तख्त तलाश करते, मिले आराम से रोटी सभी यह आस करते।
‘दीपकबापू’ चाहतों का जाल खुद बुनते, कभी गम कभी खुशी से उसमें वास करते।।
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अंतर्मन कर दिया बेरंग बाहर ढूंढते रंग, अच्छा बुरा देखकर नहीं करते कभी संग।
‘दीपकबापू’ समय बदलते हुए बहुत देखा, शीतलता बरसी कभी ताप ने किया तंग।।
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3/11/18

बनी जो मूर्तियां कभी टूट जायेंगी-दीपकबापूवाणी (murtiyan jo bani toot jaayengi-Deepakbapuwani)

सेठ कहलाते जरूर मगर कर्ज में डूबे हैं, महलों में बनाई बस्ती मगर मर्ज में ऊबे हैं।
‘दीपकबापू’ लूट की राह चलते है कमाने, अपनी भावी पीढ़ियों के फर्ज में मंसूबे हैं।।
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पर्दे पर प्रेरणा के नायक रोज बदलते हैं, विज्ञापन दर में उनके चेहरे ढलते हैं।
‘दीपकबापू’ राम कृष्ण जैसा किसी को माने नहीं, वही उनकी भक्ति में पलते है।।
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पहले मुश्किल को दावत देकर बुलाते, अपने हाथ में हल के लिये तलवारें झुलाते।
‘दीपकबापू’ मन बहलाना अब बंद कर दिया, भक्ति रस पिलाकर उसे रोज सुलाते।।
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बनी जो मूर्तियां कभी टूट जायेंगी, रगीन तस्वीरें अपने रंगों से कभी रूठ जायेंगी।
‘दीपकबापू’ अज्ञान के नशे में हुए चूर, पत्थरबाजों की आंखें भी जरूर फूट जायेंगी।।
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कपड़े जैसे मन बदले समझें नहीं धर्म, जिससे बने पहचान नहीं करते वह अपना कर्म।
‘दीपकबापू’ सब रिश्ते भुलाकर करते मौज, कामी पुरुष को देव मानते नहीं होती शर्म।।
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रोटिया पका लेते हमेशा भूख से ज्यादा, देशी र्लक्ष्मी के रहते विदेशी लाने का वादा।
दीपकबापू मूर्तियों पर सिमटा दी अपनी श्रद्धा, नारों में व्यापारी कल्याण का नहीं इरादा।।
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अपने घर में रोटी पर मक्खन लगाते, बाहर भूखे इंसान में क्रांति जगाते।
‘दीपकबापू’ दलालों पर यकीन नहीं करते, जो भलाई के सौदे हिस्सा पाते।।
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3/4/18

आतंक के आका अमन का मुखौटा पहने हैं-दीपकबापूवाणी (Aatank ke Aaka aman ka mukhauta pahane hain-DeepakBapuWani)





यायावरी में  बेफिक्र हो गये हम,
नहीं सताता अकेले होने का गम।
कहें दीपकबापू लोग हैरान क्यों
दर्द से हमारी आंखें नहीं होती नम।
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आतंक के आका अमन का मुखौटा पहने हैं,
लुटेरों की दुकान पर सजे गहने हैं।
कहें दीपकबापू राजा पर नहीं भरोसा
भगवान भक्ति से सब दुःख सहने हैं।
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मतलबपरस्तों भी भला क्या गिला,
लुटेरे भी लुटे उन्हें क्या मिला।
कहें दीपकबापू माया के खेले में
कोई खिलाड़ी जगह से नहीं हिला।
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पैसे के नशे से जब ऊब जाते,
लोग शराब में भी डूब जाते।
कहें दीपकबापू आनंद उठाते
वह जो भक्ति रस में डूब जाते।
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विकास के नाम सभी को ठगते,
उनके नाम के पत्थर भी लगते।
कहें दीपकबापू दोष किसे दें
लोग भी वहम की राह भगते।
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इंसानों में अब जज़्बात कहां हैं,
चले पांव अपनां स्वार्थ जहां हैं।
कहें दीपकबापू नारायण दें रोटी
लक्ष्मी का क्या कब कहां है।
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कितने सफेद पन्ने काले किये,
इश्क के गीत गाये बिना नाम लिये।
कहें दीपकबापू इंसान कमजोर है
इसलिये राम नाम लेकर जिये।
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पर्दे के चेहरे जियें या मर जायें,
सौदागर हर अदा पर कमायें।
चलचित्र में कवि दिखें या वीर
कहें दीपकबापू धरा में हम न पायें।
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11/4/16

बगदादी एक कल्पित पात्र है जो कभी नहीं मरेगा-हिन्दी व्यंग्य लेख (Baghdadi A Dream Parson who not Dead anytime-Hindi Satire Article)


            बगदादी नाम का कोई व्यक्ति इस धरती पर पैदा ही नहीं हुआ जो मरेगा। वह बिना पैदा हुए ही अमर हो गया है।  दरअसल पूरे विश्व के प्रचार माध्यम अंततः माफिया और पूंजीपतियों के सहारे चलते हैं।  खासतौर से विश्व की हथियार बनाने वाली कंपनियां कहंी न कहीं विश्व मेें आतंकवाद के कारण बहुत फायदे में रहती हैं।  मध्य एशिया में राष्ट्र तो नाम के हैं वरना तो वहां भी कबीलों के सरदारों का अब भी वर्चस्व है।  यह सरदार पैसे, पद और प्रतिष्ठा के भूखे हैं-इस कदर कि हिंसा या अहिंसा का उनके लिये कोई अर्थ नहीं है। सऊदी अरब तथा तुर्की ने मिलकर इन सरदारों को आतंकवाद का ठेका दिया और बगदादी नाम का एक कल्पित शासक गढ़ दिया-जिसके नाम के पीछे यह सब छिपे रहें। फिर उनके खरीदे बुद्धिजीवी पटकथा लिखकर उसे चलाते रहे।  कहीं से एक फोटो उठाकर अंतर्जाल पर टांग दिया और कहा यही है बगदादी।
           पांच बार उसे मार चुके।  इराक की सेना एक बार दावा करती है कि हमने उसे मारा तो अमेरिका का खंडन आता है। दूसरी बार तुर्की का खंडन आता है।  अब मोसुल में उसे घिरा बताया गया और हम सोच रहे थे कि उसके पटकथाकारों से कहें कि ‘यार, उसे अब वहां से निकालो, वरना तुम्हारा सारा खेल खत्म हो जायेगा।’
       इससे पहले कि हम यह बात फेसबुक पर लिखने का समय निकाल पाते तब तक ब्रिटेन के विदेशमंत्री का बयान आया कि-‘बगदारी मोसुल से निकल गया है।’
     हमें बरबस हंसी आ ही गयी।  इससे पहले मजेदार खबरे आ रही थीं
     ‘बगदादी बुरी तरह घायल है और बिना किसी के सहारे के चल नहीं सकता।’
       ‘बगदादी मोसुल में बनी सुंरगों में इधर उसे उधर भाग रहा है।’
     ‘मोसुल में इराकी सेना ने उस जगह को घेर लिया है जहां बगदादी छिपा है।’
       बगदादी अगर इस धरती पर होता तो ही मौसुल में मिलता। बगदादी की वजह से न केवल कंपनियों के हथियार बिक रहे हैं वरन पूंजीपतियों के टीवी चैनल उसके समाचारों तथा फिर बहसों से अपने विज्ञापनों का समय पास करते हैं।  हमारी दृष्टि से बगदादी नाम का कोई व्यक्ति हुआ ही नहीं जो घायल हो जाये या मरकर अमर हो।  इतना ही नहीं अरब देशों में चल रहा संघर्ष अभी थमने वाला नहीं है क्योंकि वहां पेट्रोल है तो पश्चिमी देशों के पास हथियारों का जखीरा। बगदादी एक ऐसा कल्पित खलनायक हैं जिसका कोई ढूंढ ही नहीं सकता।  उसकी पटकथा लिखने वाले बहुत हैं। एक मारेगा तो दूसरा जिंदा कर लेगा।  एक भगायेगा तो दूसरा नचायेगा। हमारे यहां आचार्य चतुरसन का एक लिखा उपन्यास प्रसिद्ध है ’चंद्रकांता संतति’-जिसे हमने पढ़ा नहीं है-पर कहा जाता है कि उसके पात्र भी कुछ इसी तरह के हैं।
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8/17/16

चिंतायें बेचते महंगे दाम-हिन्दी कविता (Chintaey bechte Mahange Dam-HindiPoem)


सोचते सभी
मगर कर नहीं पाते
भलाई का काम।

कहते सभी निंदा स्तुति
मगर कर नहीं पाते
बढ़ाई का काम।

कहे दीपकबापू चिंत्तन से
जी चुराते मिल जाते 
हर जगह लोग
चिंतायें बेचते महंगे दाम
करते लड़ाई का काम।
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6/3/16

बेपरवाही-हिन्दी कविता(Beparvahi-Hindi Poem)

कातिल नहीं देखते
किस का दिल टूटेगा
या शरीर रूठेगा।

थामा जिसने हथियार
चलाने पर होता आतुर
अक्ल तय नहीं कर पाती
किसका जीवन रूठेगा।

कहें दीपकबापू जज़्बात से
रिश्ता निभाना भूल गये लोग
धीमी हो गयी सोच
देख नहीं पाते
बेपरवाह चलने से
किसका साथ छूटेगा।
-----------
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja "Bharatdeep"
Gwalior Madhya Pradesh

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1/23/16

किताबी नारों से जिंदगी नहीं चलती-दीपकबापू वाणी(kitabi nare se zindgi nahin chalti--DeepakBapuWani)

न यहां कोई धरती पर उगा, न ही घर में आसमान से टपका है।
‘दीपकबापू’ इंसान से बने भेड़, कोई भेड़िये की भांति टपका है।।
....................
आस्था के नाम पर पाखंड पाले, अंधविश्वास का नाम भक्ति डाले।
‘दीपकबापू’ मखमली बिछौने पर सोयें, धर्म रक्षा करें दिल के काले।।
----------------------
लोहे के ढांचे चढ़ जाये चमकदार रंग, सवार झूमे जुड़े जब मशहूर नाम संग।
‘दीपकबापू’ बिना रंग देखें सामान, सच से खुशी की धारा हो जायेगी भंग।।
-------------------------------
अपना नाम लिखकर पत्थर सजाते, किराये पर अपनी प्रशस्ति गीत बजाते।
‘दीपकबापू’ नकली नायक बन गये, चालाकी से पराई जीत अपनी बताते।।
--------------------------
किताबी नारों से जिंदगी नहीं चलती, धन बिना धर्म की ज्योति नहीं जलती।
‘दीपकबापू’ तलवार में ढूंढते सिद्धि, अर्थ बिना ज्ञान की उम्र शीघ्र ढलती।।
----------------
जब भिखारी करोड़पति बन जायें, तब सौदागर क्यों शान बतायें।
‘दीपकबापू’ देखें दौलत का खेल, खिलाड़ी होने का भ्रम न लायें।।
--------------------
ढूंढ रहे लोहे लकड़ी में खुशी, मस्तिष्क पर चिंता के पहरे हैं।
‘दीपकबापू’ ओम का दिल से जाप, करे वही जाने भाव गहरे हैं।
-----------------------
पहले विकास के मोती आयेंगे, ठेका होगा माला में पिरोये जायेंगे।
 ‘दीपकबापू’ ढूंढ रहे अपना हिस्सा, मिले तो गले में पहन पायेंगे।।
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वैभव में हो जाती जल्दी आसक्ति, करना आसान दिखावे की भक्ति।
‘दीपकबापू मन में पाले चालाकी, तन पर लगाई त्यागी की तख्ती।।
................
कातिल देश में फरिश्ते नहीं होते, इंसानी वेश में कई शैतान भी होते।
‘दीपकबापू’ बेकार अमन की बात, शब्दों के जादूगर हैवान भी होते।।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
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1/2/16

भक्त भगवान नहीं बनते-हिन्दी कविता(Bhakt Bhagwan Nahin bante-Hindi Kavita)

जिन्हें आता
नये नये वेश बनाना
बहुरुपिये कहलाते।

कहीं बन जाते स्वामी
कहीं सेवक होकर
दिल बहलाते ।

कहें दीपकबापू ज़माने से
जीता वही जिसने छल किया
बोझा उठाया उसने
कंधे पर हल लिया
भक्त भगवान नहीं बनते
पुजते हैं वही यहां
 अपने भय से जो दहलाते।
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12/25/15

हंसते शब्दों का मजा लेते हैं-हिन्दी कविता(Hanste Shabdon ka Maza lete hain-Hindi Kavita)

सपनों का संसार
कभी कभी हम
यूं ही सजा लेते हैं।

ज़मान के कान बंद लगते
मद्धिम सुर में हम
यूं ही गीत बजा लेते हैं।

कहें दीपकबापू रस्मों पर
चलते चलते होती
जब दिल में उकताहट
अकेले में अपने ही
हंसते शब्दों का
यूं ही मजा लेते हैं।
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12/15/15

फुर्सत किसे है-हिन्दी कविता(Fursat Kise Hai-Hindi kavita


सच दबा रहता
झूठ की परत के नीचे
देखने की कोशिश करे
 फुर्सत किसे है।

पर्दे पर विज्ञापन के दावे
कभी खरे नहीं होते
आंखें बचाकर निकले
फुर्सत किसे है।

कहें दीपकबापू द्वंद्वों पर
रोने हंसने का फैशन हो गया
सद्भाव की प्रशंसा करे
फुर्सत किसे है।
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12/6/15

मजदूर ने सब जमाया-हिन्दी कवितायें (Mazdoor ne sab jamaya-Hindi


कांच टूटने की तरह
दिल की आवाज नहीं आती।
शब्दों के खेल में मशगूल
काली नीयत बाज़ नहीं आती।
कहें दीपकबापू बहकती जुबान
बाहर कोई राज नहीं लातीं।
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संगमरमर के पत्थर से
 आलीशन महल बनाया।
दावा करते खून से बना
पसीना जमकर बहाया।
कहें दीपकबापू सभी जाने
मजदूर ने सब जमाया।
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11/27/15

बन जाये फकीर-हिन्दी कविता(Ban jaye Faqir-Hindi Kavita)


सिर पार ताज
पहनने की चाहत
किसमें नहीं होती।

घिरे रहें कारिंदों के बीच
हुक्म का बादशाह होने की चाहत
किसमें नहीं होती।

कहें दीपकबापू जिंदगी में
 अपनी ख्वाहिशों को
जरूरत से आगे न जाने दे
पेट को पचाने से
 ज्यादा न खाने दे
बन जाये वह फकीर
महलों की चाहत
जिसमें नहीं होती।
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11/18/15

कोई चाहे नहीं-हिन्दी कविता(koyee chahe nahin-Hindi Shayari)


सत्यनिष्ठा के ग्राहक सब
अपने पास रखना
कोई चाहे नहीं।

वफा के प्रशंसक सब
अपने अंदर रखना
कोई चाहे नहीं।

कहें दीपकबापू जिंदगी में
व्यवहार का होता व्यापार
सिद्धांत खूंटी पर टंगे अपार
सादगी पर लोग हंसते
अपनी चाल में ही फंसते
फिर भी सीधी चाल चलना
कोई चाहे नहीं।
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11/8/15

जिंदगी का वायदा-हिन्दी कविता(Zindagi ka Vayda-Hindi Poem)


बिक जाये जो सामान
वही अच्छा कहें
यह बाज़ार का कायदा है।

ज़माने में मनभावन
कहलाता वही
जिसकी अदाओं से फायदा है।


कहें दीपकबापू बहस के बीच
अक्लमंद तर्क से जंग लड़ते
फैसला करना मुश्किल
दिमाग के रास्ते तंग पड़ते
आंख कान के मौन से
बचना ही लगता सरल
यही जिंदगी का वायदा है।
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11/1/15

चैन भगा रहे हैं-हिन्दी कविता(Chain Bhaga rahe hain-HindiKavita)

सर्वत्र शांत वातावरण
पेशवर अक्लमंद परेशान
शोर मचाने के लिये
खुद ही आवाज लगा रहे।

कहीं खून बहे
चिड़िया या कबूतर का
इसलिये बाज़ जगा रहे हैं।

कहें दीपकबापू हमदर्दी से
कमाई जाती है रोटी
शराब और बोटी
मौन समाज में
चैन भगा रहे हैं।
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10/20/15

मनोरंजन का व्यापार-हिन्दी कविता (Manoranjan ka vyapar-Hindi Kavita)

मनोरंजन के व्यापार में
रोना हंसना भी
बिकने की शय है।

सेठों की तिजोरियां भरती
 मुनीम बहियों में लगे
लिखने की लय है।

कहें दीपकबापू मन के खेल में
विशेषज्ञ ही जीतते हैं
ऊबे इंसान की
चाहतों के सामने
उनके लालची चालें महंगी बिकना
 पहले से तय है।
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10/9/15

भ्रष्टाचार का ज्ञान-हिन्दी व्यंग्य कविता(Bhrashtachar ka Gyan-Hindi Vyantaya kavita)


भ्रष्टाचार रोको आंदोलन
हर दिन रूप बदलकर
सामने आते हैं।

पता नहीं
भगवान भक्तों के देश में
बेईमान कहां से आते हें।

दीपकबापूउठायें सवाल
जहां हर जुबान से निकलता
गीता का ज्ञान
वहां रिश्वत कमाने वाले पाते 
समाज में शान
लोग बुराई नहीं समझते
या मतलब से भूल जाते हैं।
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9/27/15

आत्मविज्ञापन का युग-हिन्दी कविता(AtmaVigyapan ka Yug-HindiKavita)

आत्मविज्ञापन का युग है
देवता बनो या राक्षस
मशहूर हो जाओगे।

छंद रचो या गद्य लिखो
चाटुकारिता चमका देगी
स्वयं से दूर हो जाओगे।

कहें दीपकबापू आम इंसान से
दूरी पर खड़ा है शिखर
चढ़ गये तो खास कहलाओगे
फिर नीचे आने के डर से
हमेशा घबड़ाओगे।
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