पद्मावत फिल्म के विरोध में हिंसा समाज, धर्म और राष्ट्र को बदनाम कर सकती है-हिन्दी चिंत्तन
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हमने बीस साल से फिल्म थियेटर जाना ही छोड़ दिया है। आजकल यह हाल है कि हर फिल्म एक महीने बाद टीवी पर आ जाती है इसलिये कौन तीन घंटे जाकर थियेटर में समय तथा पैसा बर्बाद करे? बहरहाल पद्मावत फिल्म का विवाद पिछले एक दो साल से देख रहे हैं। हमारी अब तक यह समझ में नहीं आ रहा कि इस फिल्म का विरोध कहीं इसके प्रचार के लिये तो नहीं हो रहा। हो सकता है विरोधियों की नीयत साफ हो पर कहीं न कहीं इसे सुनियोजित रूप से प्रचार तो नहीं मिल रहा। हमें नहीं लगता कि टीवी और स्मार्टफोन की वजह से ज्यादा लोग फिल्म देखने थियेटर जाते हो। अब कोई फिल्म सौ दिन या दो सौदिन पूरे करती नहीं दिखती। बहरहाल इस फिल्म को हिन्दूत्व विरोधी बताकर पाखंडियों ने भी खूब प्रचार पाया है। जहां तक हमारा सवाल है तो बिना आव्हान के ही हम यह फिल्म थियेटर में क्या टीवी पर फ्री में भी देखने वाले नहीं है। हम आधुनिक सामाजिक व्यंग्य कथानक पर आधारित फिल्म पंसद करते हैं जैसे कि गोलमाल। मध्यम गति के संगीत पर गीत हमारी पसंद है। सो यह फिल्म तो टीवी पर चलती भी मिले तो हम चैनल बदल देंगे। सबसे ज्यादा बुरा हमें यह लग रहा है कि इस फिल्म के विरोध में जिस तरह सड़कों पर तोड़फोड़ हो रही है उस पर हमें गुस्सा आ रहा है। यह निरर्थक हिंसा समाज विशेष ही नहीं हिन्दू धर्म के साथ ही देश के भी विश्व में बदनाम करने वाली है। यह कमजोर समाज की निशानी है जबकि हम लोग मजबूत चरित्र तथा आदर्श की राह पर चलने वाले लोग हैं जिसकी ताकत मौन होता है और उदासीनता एक शस्त्र। सो उदासीन आसन करें। इस पर लिखा गया यह लेख आप चाहें तो पढ़ सकते हैं।
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